*बुंदेलखंड की सियासत बिसात पर कभी बजता था, इन कुख्यात डकैतों के खौफ का डंका खात्मे के साथ खत्म हो गई हनक*
बुंदेलखण्ड में राजनीति की बिसात पर कभी कुख्यात डकैतों का डंका बजता था और शह मात का खेल इनकी मर्जी पर अपना रुख बदल देता था लेकिन कहा जाता है न कि वक्त बड़ा बलवान होता है । सो दहशत के सौदागर इन खूंखार डकैतों पर वक्त की मार पड़ी और इनके खात्में के बाद बुन्देलखण्ड की सियासी जमीं पर इनकी और इनके परिवार की हनक भी खत्म हो गई। ये दस्यु सरगना जब तक कानून के शिकंजे से बाहर थे तब तक किसी की क्या मजाल कि जंगल के फरमान के बिना सियासी ख्वाब भी देख ले और अपनी मर्जी का मालिक बन बैठे। जो भी होता था जंगल से आए हुए फरमानों के मुताबिक होता था। जिसने सिर उठाने की कोशिश की उसे बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया।
*राजनीति में खौफ का दूसरा नाम था ददुआ*
बुंदेलखण्ड की सियासी ज़मीं गवाह है कि वर्ष 1980 से लेकर 1990 व 2000 के शुरुआती दौर तक इस इलाके की राजनैतिक फिजाओं में यदि किसी की तूती बोलती थी वो था दुर्दांत ददुआ और ठोकिया, चित्रकूट के रैपुरा थाना क्षेत्र अंतर्गत देवकली गांव का रहने वाले ददुआ ने अपने दस्यु जीवन के दौरान जब जिसको चाहा प्रधान से लेकर जिला पंचायत सदस्य अध्यक्ष और यहां तक कि सांसद विधायक तक बनवाया। आज भी फिज़ाओं में ददुआ और बुन्देलखण्ड की राजनीति के किस्से आम हैं। कोई भी सफेदपोश विजयी होता तो वो जंगल में ददुआ से मिलने उसका इस्तकबाल करने जरूर जाता। जो भी ददुआ की मर्जी के खिलाफ जाने की कोशिश करता मौत उसका इंतजार कर रही होती। सन 2005 में ददुआ के बेटे वीर सिंह ने निर्विरोध जीत दर्ज की जिला पंचायत अध्यक्ष के पद पर इससे पहले व बाद में भी ददुआ के जिंदा रहने (2007 में इनकाउंटर से पहले) तक उसके फरमानों पर चित्रकूट सहित बुन्देलखण्ड की राजनीतिक सूई घूमती थी। चित्रकूट के न जाने कितने गांवों में सिर्फ ददुआ के नाम पर उसके आदमी ग्राम प्रधान से लेकर पंचायत के विभिन्न पदों पर आसीन हुए। 2002 के यूपी विधानसभा चुनाव में तो बकायदा ददुआ की ओर से एक विशेष राजनीतिक दल के लिए फरमान जारी किया गया था कि ”मुहर लगाओ……पर वरना गोली खाओ छाती पर” ये फरमान सिर्फ बुन्देलखण्ड में ही नहीं बल्कि चित्रकूट के पड़ोसी जिलों में भी काफी चर्चित हुआ था, 2009 में ददुआ के भाई बाल कुमार पटेल ने मिर्जापुर लोकसभा सीट से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की।
*ठोकिया भी चला ददुआ के नक्शे कदम पर*
वर्ष 2000 के आस पास एक और खूंखार डकैत बीहड़ का बेताज बादशाह बन चुका था और उसका नाम था अंबिका पटेल उर्फ़ ठोकिया, वर्ष 2007 में 7 एसटीएफ जवानों को मौत के घाट उतारकर खौफ की इबारत लिखने वाले ठोकिया ने भी अपनी दहशत से अपने परिजनों की राजनीतिक ज़मीन तैयार की. सन 2005 में दस्यु ठोकिया की चाची सरिता कर्वी ब्लाक प्रमुख के पद पर निर्विरोध निर्वाचित हुई थी जबकि उसकी दूसरी चाची सविता निर्विरोध जिला पंचायत सदस्य व एक अन्य चाची निर्विरोध ग्राम प्रधान निर्वाचित हुई थी। यही नहीं सन 2007 में ठोकिया की मां पियरिया देवी बांदा जिले के नरैनी विधानसभा क्षेत्र से राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के टिकट पर चुनाव लड़ी लेकिन उसे हार का मुंह देखना पड़ा और 27 हजार मत पाकर वह दूसरे स्थान पर रही।
*खात्में के साथ खत्म हुई हनक*
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश एसटीएफ द्वारा सन 2007 में ददुआ व् 2008 में ठोकिया का इनकाउंटर करने के बाद बुन्देलखण्ड में काफी हद तक इन कुख्यात डकैतों की तैयार की गई दहशत की ज़मीं दरकने लगी और इनके शागिर्द सिपहसलार एक एक करके नेपथ्य के पीछे जाने लगे. हालांकि आज भी ददुआ को एक तबका पूज्यनीय मानता है । अपने समाज के लिए. ठोकिया की तो मौत के बाद उसके परिजनों की राजनीतिक महत्वकांक्षा दम तोड़ गई और आज सभी साधारण जीवन जी रहे हैं। इसके इतर ददुआ के परिजनों मसलन पुत्र वीर सिंह, ददुआ के भाई बाल कुमार पटेल, बाल कुमार के बेटे राम सिंह ने अपनी राजनैतिक बिसात कायम रखी और आज भी पूरा परिवार समाजवादी पार्टी में खासा सक्रीय है । 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में वीर सिंह कर्वी विधानसभा से विजयी हुए थे सपा के टिकट पर चुनाव लड़कर तो उनके चचेरे भाई राम सिंह ने सपा के ही टिकट पर पट्टी विधानसभा से चुनाव लड़कर विजयश्री हासिल की थी ।