अन्धो में काने राजा वाली कहावत सर्वोदय इण्टर कालेज में हुई बेइज्जत

Feb 13, 2024 - 14:03
Feb 13, 2024 - 14:06
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अन्धो में काने राजा वाली कहावत सर्वोदय इण्टर कालेज में हुई बेइज्जत

सर्वोदय इण्टर कालेज के प्रधानचार्य की डिटेल से गायब दिखा बीएड

 आर्ट के डिप्लोमा ने बीएड की डिग्री को किया फिसड्डी

क्या समिति ने ज्ञान के आभाव में बीएड को छोड़ आर्ट के डिप्लोमा को दे दी प्रधानाचार्य की कमान

जिस वर्ग का अध्यापक नियुक्त करने पर निदेशालय ने किया गुरेज उसी वर्ग को बना दिया कर्यवाहक

उरई(जालौन)। आज जहां शिक्षा में डिग्रीयों को बड़ा महत्व दिया गया है । और किसी भी पद के लिए उस पद से संबंधित डिग्री का होना अनिवार्य होता है। क्योंकि शिक्षा विभाग में अगर चपरासी से पढ़ाने को कहा जय तो वो नही पढ़ा पायेगा क्योकि उसके पास अगर डिग्री होती तो वो पहले ही अधयापक बन जाता इसके अलावा प्राईमरी व जूनियर स्कूलों के लिए डिग्रियों के आधार पर वरीयता दी जाती है अगर उम्र के हिसाब से बरीयता दी जय तो स्कूल का चपरासी सबसे ऊँचे ओहदे पर मिल जाएगा। ऐसा ही एक वाक्या सर्वोदय इण्टर कालेज का है जहाँ डिग्री नही उम्र के हिसाब से कर्यवाहक बना दिया गया । जबकि एक कहाबत में कहा गया कि अन्धो में जो काना होता है उसको राजा मान लिया जाता है । लेकिन जहाँ सबको दो आंखे हो और एक आंख बाले को राजा बना दिया जाय तो ऐसे में बुजुर्गों द्वारा कही गई कहावत की वेइज्जती करना ही कहेंगे। क्योकि सूत्रों की माने तो कर्यवाहक प्रधानाचार्य बनने के लिए बीएड होना अनिवार्य है जबकि कला वर्ग के डिप्लोमा को ये वरीयता नही दी जानी चाहिए । जबकि सर्वोदय इण्टर कालेज के कर्यवाहक प्रधानाचार्य की डिटेल में बीएड गायब है । और आर्ट के डिप्लोमा के दम पर कार्यभार संभाल रक्खा है। जबकि बीएड डिग्री धारक आर्ट के डिप्लोमा के आगें जी हजूरी करते दिख जाते है। अगर सूत्रों की बात सही है तो इनकी नियुक्ति किसके द्वारा की गई जिसने बीएड को छोड़ आर्ट डिप्लोमा को वरीयता दे दी लेकिन जिसने ये कार्य किया है । शायद वो पढ़ाई करने के लिए पीछे के गेट से गये होंगे इस लिए उनको डिग्रियों का महत्व पता नही है। जबकि सूत्रों का कहना है कि समिति द्वारा इनको वरीयता के क्रम में नियुक्त किया गया था। तो इस आधार से देखा जाय तो सायद समिति पर अन्धो में काने राजा वाली कहावत सूट करती है। वहीं सूत्रों से सबसे बड़ा खुलासा तो तब हुआ जब पता चला कि कॉलेज में काला वर्ग की मान्यता ही नही है और निदेशालय से कोई भी अध्यापक कला के लिए भेजा ही नही गया तो कला वर्ग के डिप्लोमा वाला तो इस कॉलेज में अध्यापक तक नही बन सकता तो कर्यवाहक प्रधानाचार्य कैसे बन गया । और अज्ञानता में बन भी गया तो इतने सालो में कोई ऐसा ज्ञानी नही आया कि इसमें बदलाव कर सके। वही सूत्रों ने यह भी बताया कि समिति ने जातिवाद के आधार पर अनिमित्ताएँ करते हुई इनको कर्यवाहक बना दिया गया था । अधिकारी रहे मौन सवालों से कर रहे किनारा उरई(जालौन)। जब जालौन के डीआईओएस से स्कूल में रह रहे अध्यापक के बारे में बात की गई तो उन्होने कोई प्रतिक्रिया नही दी । जब प्रधानाचार्य के बारे में पूछने के लिए कई बार फोन किया गया तो वही सच्चाई जानने वाला नम्बर देख डीआईओएस ने फोन ही साइलेंट कर दिया । और बैक कॉल भी नही की जबकि शासन से अधिकारियो को हर किसी का फोन उठाकर जबाब देने के निर्देश है लेकिन जब डीआईओएस पत्रकार के फोन को इगनोर कर रहे तो आम लोग तो इनकी आवाज सुनने को ही तरस जाएंगे । लेकिन इस मामले में डीआईओएस की भूमिका भी संवेदनशील लग रही है । क्योंकि ये तो डिग्री धारक है । और इस मामले की जानकारी इनको ना हो ऐसा सम्भव ही नही क्यो एक जनपद के ऐसे ही मामले का संज्ञान लेते हुए वहाँ के डीआईओएस ने कॉलेज की समिति भांग कर सारे पावर अपने हाँथ में ले लिए थे । लेकिन जालौन में ये शायद संभव नही ।

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