मध्य प्रदेश। राजनीति l
बुंदेलखंड की अधिकांश अन्य सीटों की तरह टीकमगढ़ लोकसभा सीट भी भाजपा का अभेद्य गढ़ रहा है। 2008 में परिसीमन के बाद जब से यह निर्वाचन क्षेत्र अस्तित्व में आया है, टीकमगढ़ भाजपा के पास रहा है। केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र खटीक को सागर से यहां भेजे गए थे क्योंकि परिसीमन प्रक्रिया में इसे अनारक्षित कर दिया गया था। तब अनुसूचित जातियों के लिए टीकमगढ़ को एक नई आरक्षित सीट बनाई गई थी। टीकगमढ़ लोकसभा सीट पर दूसरे चरण में वोटिंग है।
*बाहरी का मुद्दा फिर भी बढ़ रहा जीत का अंतर*
टीकगमढ़ निर्वाचन क्षेत्र में कई लोगों द्वारा बाहरी व्यक्ति का मुद्दा उठाया गया था। इसके बावजूद भगवा झंडा फहराते हुए खटीक न केवल सीट जीत रहे हैं, बल्कि प्रत्येक चुनाव के साथ जीत का अंतर भी बढ़ा रहे हैं। 2009 में उन्होंने कांग्रेस के 30.1% के मुकाबले 38.1% वोट हासिल किए। अगले चुनाव में इसे 55% और 2019 के चुनाव में 61.3% तक बढ़ा दिया।
*सपा ने हमेशा उतारा उम्मीदवार*
समाजवादी पार्टी ने लगभग हमेशा इस निर्वाचन क्षेत्र में अपना उम्मीदवार उतारा है। अपवाद 2009 है, जब कांग्रेस के 31% के साथ इसका 6% वोट शेयर भाजपा के 38.1% के करीब आ गया था। 2024 में सपा इंडिया गठबंधन के साथ है। हालांकि समाजवादी पार्टी की मौजूदगी से कोई खास फर्क नहीं पड़ा है क्योंकि उसके उम्मीदवारों को उन चुनावों में 4% से 6% वोट मिले हैं।
*कांग्रेस बदलती रही है उम्मीदवार*
वहीं, कांग्रेस पार्टी हर चुनाव में इस सीट पर अपने उम्मीदवार बदलती रही है। इस बार भी उसने खटीक के खिलाफ नए उम्मीदवार पंकज अहिरवार को मैदान में उतारा है। खास बात यह है कि कांग्रेस हमेशा से अहिरवार उम्मीदवार पर ही अड़ी रही है। मानो उसे यकीन हो कि एक दिन उसका कोई अहिरवार उम्मीदवार इस सीट पर हार का सिलसिला तोड़ देगा।
*6 लाख से अधिक अहिरवार मतदाता*
इस सीट पर 6 लाख से अधिक अहिरवार मतदाता हैं। यह टीकमगढ़ संसदीय क्षेत्र का सबसे बड़ा समुदाय है, उनका यह विश्वास निराधार नहीं है। टीकमगढ़ लोकसभा में तीन जिले निवाड़ी, टीकमगढ़ और छतरपुर आते हैं।
*पांच विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा*
वहीं, इस निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 8 विधानसभा सीटों में से 5 सीटें भाजपा के पास हैं और 3 कांग्रेस के पास। विधानसभा चुनावों में भाजपा उम्मीदवारों की जीत कांग्रेस उम्मीदवारों की तुलना में कहीं अधिक अंतर से हुई थी। कुल मिलाकर, भाजपा उम्मीदवारों ने निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 8 विधानसभा सीटों में कांग्रेस उम्मीदवारों की तुलना में 75,000 अधिक वोट हासिल किए थे। कांग्रेस पार्टी के अहिरवार उम्मीदवार लगातार चुनावों में वृंदावन अहिरवार से लेकर डॉ. कमलेश अहिरवार और किरण अहिरवार तक प्रभाव छोड़ने में विफल रहे हैं।
*मोदी लहर में सबसे ज्यादा जीत का अंतर*
दूसरा बड़ा कारण पिछले दो चुनावों में मोदी लहर है। स्थानीय विश्लेषकों का कहना है कि 2019 के पिछले चुनाव में जब खटीक ने अब तक के सबसे ज़्यादा अंतर से जीत हासिल की थी और कुल वोटों का 61% से ज़्यादा हासिल किया था, तब वोटिंग प्रतिशत में लगभग 17% की उछाल आई थी। एमपी और अन्य जगहों पर पहले चरण के चुनाव में कम मतदान के बाद, वोटिंग भी एक दिलचस्प कारक होगा। साथ ही भाजपा और कांग्रेस के लिए जीत या हार का अंतर तय करने में निर्णायक कारक भी हो सकता है।