अयोध्या में श्री राम के लिये प्राण न्योछावर करने वालो की उपेक्षा से परिवार आहत

Jan 14, 2024 - 08:17
Jan 14, 2024 - 11:21
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अयोध्या में श्री राम के लिये प्राण न्योछावर करने वालो की उपेक्षा से परिवार आहत

अनुराग श्रीवास्तव ।जालौन ।अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि स्थल की मुक्ति और ताला खुलवाने के चलाये गये आंदोलन में क्षेत्र के लोगों ने भी अहम भूमिका निभाई थी। ग्रामीण क्षेत्र के श्रीराम भक्तों ने मंदिर के अपने प्राणों तक को न्योछावर कर दिया था। अब जब श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ अयोध्या में मंदिर का निर्माण चल रहा है तथा 22 जनवरी को प्रभु श्री राम विराजमान होने जा रहे हैं। इस मौके पर भगवान के प्राण न्योछावर करने वाले भक्तों को अयोध्या से आमंत्रण मिलने की उम्मीद थी। अयोध्‍या से आमंत्रण न मिलने व कार्यक्रम को लेकर चलाये अभियान में उनकी उपेक्षा होने से उनके परिजन दुखी हैं। किन्तु निर्माण व प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को लेकर उत्साहित भी है हिन्दुओं के आस्था के प्रतीक भगवान श्रीराम की जन्मभूमि में ताले में बंद भगवान श्रीराम को मुक्त दिलाने के लिए 8 अप्रैल 1984 से आन्दोलन की शुरुआत हो गयी थी।दिल्ली में संत-महात्माओं, हिंदू नेताओं ने अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि स्थल की मुक्ति और ताला खुलवाने को आंदोलन का फैसला किया। जनवरी 1989 में प्रयाग में कुंभ मेले के दौरान मंदिर निर्माण के लिए गांव-गांव शिला पूजन कराने का फैसला हुआ।इसके बाद यह आन्दोलन लगातार आगे बढ़ता गया। गिधौसा निवासी तुलसीराम को भगवान श्रीराम से अटूट लगाव था जब उन्हें इस आन्दोलन की जानकारी हुई तो वह अपने प्रभु के घर परिवार छोड़ कर अयोध्या के निकल गये हैं। 27 अक्टूबर 1990 में कार सेवक के रूप में गये तुलसीराम की 3 दिन बात मौत हो गई। 30 अक्टूबर 1990 को घर में खबर आयी कि आन्दोलन के दौरान मौत हो गई। पिता की मौत के परिवार में दुख भी था किन्तु भगवान के लिए प्राण न्योछावर करने पर गर्व भी। उनके ज्येष्ठ पुत्र रामकृष्ण व छोटे पुत्र कृष्णकुमार ने मां की इच्छा पर पिता के नाम पर 25 मई 2001 में मंदिर का निर्माण करा दिया। इसके साथ ही श्रीराम भक्त ग्राम धंतौली निवासी पुत्तु सिंह पुत्र दूसा राम सिंह ने 6 दिसंबर 1992 में बाबरी विदवंस के दौरान प्राण त्याग दिये थे।राम मंदिर के लिए प्राण छोड़ने वाले पुत्तू बाबा के पुत्र कुशलपाल सिंह व नन्हे राजा को भी उम्मीद थी कि उन्हें अयोध्या से निमंत्रण मिलेगा । राम मंदिर के लिए प्राण त्यागने वाले दोनों लोगों के परिजनों को शव तक नहीं मिला था जिसके अंतिम संस्कार करने का भी मौका नहीं मिला था।दोनों परिवारों को अयोध्या से निमंत्रण न मिलने तथा शुभघड़ी आने के मौके पर आयोजित हो रहे हैं कार्यक्रमों में भी स्थान न मिलने से वह आहात है। कार्यक्रम से जुड़े विभिन्न संगठनों के लोगों पर उपेक्षा से कुपित है।

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