केशव सिंह मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार में जयंत मलैया, गोपाल भार्गव, बिसाहूलाल सिंह जैसे कई कद्दावर नेता मंत्री पद पाने से वंचित रह गए। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या सीनियरिटी या कई बार जीत भी मंत्री पद की गारंटी नहीं है ? कद्दावर नेताओं का पत्ता कैसे साफ हुआ ? मध्य प्रदेश में मोहन यादव के नेतृत्व वाली सरकार के नए मंत्रिमंडल में कई नए चेहरे हैं तो कुछ पुराने दिग्गजों को भी जगह दी गई है. लेकिन कई कद्दावर ऐसे भी हैं, जिनका मंत्री बनना लगभग तय माना जा रहा था लेकिन मंत्रियों की सूची में इनका नाम नदारद था । इसके पीछे जातिगत-क्षेत्रीय समीकरणों के साथ ही भारतीय जनता पार्टी की भविष्य के लिए नई लीडरशिप तैयार करने की रणनीति को प्रमुख वजह बताया गया।
मोहन मंत्रिमंडल में शामिल बीजेपी के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय ने कहा है कि कैबिनेट में सिर्फ 15 फीसदी विधायक ही मंत्री के रूप में शामिल किए जा सकते हैं। सबको मंत्री पद नहीं मिल सकता, इसलिए कुछ वरिष्ठ नेताओं का छूट जाना स्वाभाविक है। विजयवर्गीय का ये बयान भी सही है, बीजेपी को 160 से ज्यादा सीटों पर जीत मिली है। अब सरकार में इतने मंत्री तो बनाए नहीं जा सकते लेकिन सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या सीनियर होना या कई बार लगातार जीत भी मंत्री पद की गारंटी नहीं है? मध्य प्रदेश की कैबिनेट में शामिल होने से कई कद्दावर नेता किन वजहों से चूक गए?
दरअसल, मोहन यादव मंत्रिमंडल में सीएम के साथ दो डिप्टी सीएम पहले से ही थे । ओबीसी सीएम के साथ सरकार में एक ब्राह्मण और एक दलित चेहरे को डिप्टी सीएम बनाया गया था। नई सरकार के पहले मंत्रिमंडल विस्तार में 18 कैबिनेट मंत्री, 6 स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री और 4 राज्यमंत्री बनाए गए। नए मंत्रिमंडल में जयंत मलैया, गोपाल भार्गव, बिसाहूलाल सिंह, मीना सिंह, भूपेंद्र सिंह, डॉ. प्रभुराम चौधरी, बृजेंद्र सिंह यादव के साथ ही पूर्व सीएम वीरेंद्र सकलेचा के बेटे ओमप्रकाश सकलेचा, पिछली सरकार के एकमात्र सिख मंत्री हरदीप सिंह डंग और संस्कृति और पर्यटन मंत्री ऊषा ठाकुर जैसे कद्दावर विधायकों और पिछली सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों के नाम नदारद रहे।