राकेश कुमार
जगमनपुर ,जालौन ।बुंदेलखंड के बहुत प्राचीन एवं प्रसिद्ध पंचनद मेला पर स्थानीय निवासियों के स्वार्थ व बदनियती की काली छाया मडराने लगी है परिणाम स्वरूप यह धार्मिक ,ऐतिहासिक, पारंपरिक मेला किस्सा कहानियां में स्मृति मात्र रह जाएगा ।
जनपद जालौन के जिला मुख्यालय उरई से उत्तर पश्चिम में 70 किलोमीटर दूर इटावा औरैया भिंड जिला की सीमा एवं यमुना चंबल,सिंध, कुंवारी,पहूज नदियों के संगम स्थल पंचनद तीर्थ पर प्रतिवर्ष कार्तिक की पूर्णिमा पर मुगलकाल से पूर्व पृथ्वीराज चौहान शासन काल से विशाल मेला लगता रहा है इस मेला की व्यवस्था मराठा साम्राज्य के अनेक राजाओं एवं बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल शहर ग्वालियर एवं जगमनपुर राज्य के राजाओं द्वारा समय समय पर की जाती रही है लगभग 300 बर्ष पूर्व से राजतन्त्र काल में पंचनद पर आयोजित स्नान पर्व व मेला की व्यवस्था जगम्मनपुर राज्य के स्थानीय राजाओं द्वारा की जाती रही । इसी प्रबंधन को लेकर जगम्मनपुर के स्थानीय राजाओ एवं पंचनद स्थित श्री बाबा साहब मंदिर के महंतों के मध्य मेला प्रबंधन एवं मंदिर स्वामित्व को लेकर विवाद भी होता रहा है । अंग्रेजो के भारत से जाने के बाद एवं देश में राजतंत्र की समाप्ति व लोकतंत्र के बाल्यकाल में जगम्मनपुर राज्य के अंतिम शासक राजा वीरेंद्रशाह जू देव ने पंचनद के मेला एवं मंदिर के स्वामित्व को लेकर सन 1953 में अदालत मुंशिफी उरई में वाद संख्या 472 के तहत जिला डिस्ट्रिक बोर्ड जालौन उरई के जिम्मेदार लोगों एवं पंचनद बाबासाहब के तत्कालीन महंत श्री भोलावन को प्रतिवादी बनाकर अपना स्वामित्व होने का दावा किया था । राजा वीरेंद्रशाह जूदेव जो एक वर्ष पहले जगम्मनपुर राज्य के शासक हुआ करते थे ने अपने वाद में स्पष्ट लिखा कि मौजूदा बंदोबस्ती सन 1936-1937 में अराजी नंबर 24 जो मंदिर परिसर,कुंआ आसपास की स्थिति सती मठिया निर्मित है जो मेला के लिए अधिकृत हैं राजा वीरेंद्र शाह जूदेव द्वारा अपने वाद में यह भी स्पष्ट लिखा कि आराजी नंबर 24 मुस्तकिल रूप से मंदिर के लिए अधिग्रहीत हैं शेष अरारी नंबर 25, 26 ,27 ,28 ,29 ,30 ,31 ,32 ,33 एवं 9 व 10 तथा 48, 49, 56,57 ,58 , 59 वास्ते मेला कार्तिक सुदी पूर्णिमा हर साल दौरान में मेला की दुकाने लगने के लिए अधिग्रहित है । न्यायालय में उक्त कथन साधारण व्यक्ति का नही वल्कि जगम्मनपुर राज्य के निवर्तमान शासक व तत्कालीन विधायक राजा वीरेंद्रशाह का है जो सन 1952 तक जगम्मनपुर राज्य के जागीरदार थे एवं उन्हें अपने हस्ताक्षर से किसी को भी आवासीय य कृषि जमीन देने या उनकी जागीर में रहने वाले किसी को भी जमीन से वेदखल करने का अधिकार प्राप्त था । राजा वीरेंद्रशाह जूदेव का कथन इस बात का प्रमाण है कि उक्त 18 नंबरों की आराजी भले ही किसी किसान को आवंटित कर दी गई हो लेकिन शर्त के मुताबिक दौरान मेला उक्त कृषि भूमि को खाली करना पड़ेगी क्योकि इस भूमि पर मेला लगने की परम्परा सैकडों वर्षो से कायम थी किंतु वर्ष 2021 से इस व्यवस्था में रोडा अटकना प्रारंभ हुआ जब से पंचनद पर विकास का पहिया घूमा और उस समय सशर्त मिली भूमि के पट्टाधारकों के वंशजों की नियत भी डामाडोल हो गई और अब वह उक्त आराजी कृषि नंबरों वाले खेतों को स्वेच्छा से खाली न करके मेला लगने में व्यवधान पैदा करने लगे परिणाम स्वरूप प्रतिवर्ष अधिकारियों की मदद से खेत खाली करवाए जाते हैं। अब तो स्थिति बद से बदतर होती जा रही है और मेला के लिए आरक्षित नंबरों में भूमि पर किसानो ने स्थाई निर्माण करना प्रारंभ कर दिए हैं । प्राचीन मेला की परंपरा को बनाए रखने के लिए बाबासाहब मंदिर के महंत सुमेरबन ने मुंसिफ न्यायालय जालौन में बाद कायम भी करवाया है एवं संबंधित अधिकारियों को भी प्रार्थना पत्र दिया ताकि खेतो मे हो रहे स्थाई निवास को रोका जा सके किंतु खेत मालिक छोटे निषाद कई कारीगर एवं मजदूर लगाकर निर्माण कार्य करने में जुटे हैं यदि एक खेत स्वामी अपने खेत में निर्माण कर लेगा फिर सभी किसान प्राचीन अनुबंधन को तोड़ अपने-अपने खेतों में निर्माण कर लेंगे परिणाम स्वरूप पंचनद पर लगने वाला प्राचीन मेला जगह के अभाव में स्वतः समाप्त हो जाएगा ।
उक्त संदर्भ में इंटर कालेज के शिक्षक एवं पूर्व जिला पंचायत सदस्य प्रमोद सिंह सेंगर ने कहा कि यदि पंचनद तीर्थ क्षेत्र की गरिमा को बनाए रखना है तो मंदिर के आसपास की उक्त कृषि भूमि का अधिग्रहण कर किसानों को कहीं अन्य उपजाऊ भूमि दी जाए । ग्राम पतराही निवासी महेंद्र सिंह सेंगर रिटायर्ड शिक्षक ने जिलाधिकारी से अनुरोध किया है कि धारा 15 के उपबंध (1) 1963 के अधिनियम 56 के तहत सरकार को भूमि ग्रहण करने का अधिकार है । बुंदेलखंड के इस मुख्य तीर्थ के विकास में उक्त कृषि नंबरों की आवश्यकता है प्रशासन सरकार को उक्त नंबरो को अधिग्रहण करने के लिए प्रस्ताव भेजे क्योकि उक्त कृषि भूमि का अधिग्रहण किया जाना आवश्यक है।