कालपी : जमीन एक पर दाबेदार हर बार नये..........., आखिर असली हकदार कौन.......!!
*धन बल के आगे इतना भी नतमस्तक होना पुलिस के लिए अच्छी बात नहीं!* *नायब तहसील दार और कोतवाल को नव बालिग बेटियों को बंधक बनाने का अधिकार किसने दिया* ? *घर में घुस कर हमला करने वालों के विरुद्ध मुकदमा न लिखना खड़े कर रहा पुलिस पर सवाल?* *गाँव में भूमि विवाद की असली जड़ कही माननीय तो नहीं!* कालपी ! किसी ने सच ही कहा है *जब आग लगी होती है तभी धुंआ उठता है* अगर बात समझ में न आई हो तो आपको बता ही दे कि मामला है कालपी कोतवाली क्षेत्र के ग्राम देवकली का जहां आबादी में एक प्लाट है जिसमे छोटी का कब्जा है एक दिन अचानक एक नेता जी वहाँ से गुजरे जो कल तक इसकी उससे और उसकी इससे कर कर गाँव के माननीय बन गए और अब तो माननीय की पूँछ ही बढ़ गई इस पूंछ में वे हकीकत ही भूल गए अब वे अपनो को ही लड़ाने लगे जिसके चलते उक्त माननीय ने उसी प्लाट का दूसरा दावेदार तैयार मात्र इतने से लालच में किया कि यदि उसका कब्जा करा दे तो बाद में अपने हक में भी करवा लेंगे इतना ही नहीं उन्होंने उसे छोटी के घर महिलाओं को लड़ने भेज दिया जब छोटी को ये पता चला कि इसमे तो बहुत लोगों की निगाहे हैं तो उन्होंने कोर्ट की शरण ली और इधर माननीय ने स्वयम का स्वार्थ का खुलासा न करते हुए लोगों को एकत्रित किया और कोर्ट में विचाराधीन मामले के दौरान थाने में उसके बेटे से दबाव में समझौता लिखवा लिया परंतु पिता ने कहा कि जब हम लोगों ने किसी बात को कोर्ट में रखा है तो निर्णय भी कोर्ट का मानेंगे अब पुलिस कभी ऐसे कभी वैसे जब जब लाभानवित होती छोटी के परिजनों पर प्लाट खाली करने का दबाव बनाने लगती जबकि क्या कोर्ट में जब तक निर्णय न हो जाये तब तक इस तरह के क्रिया कलाप न्याय हित में नहीं होता। फिर भी पुलिस ने एक बार नहीं कई बार ऐसा किया अब जबाब साफ है कि पुलिस का रवैया ऐसा कब रहता है जब चांदी की जूती से दबी होती है एक ओर जन जन को न्याय दिलाने में पूरी निष्ठा से दिन रात जुटे रहने वाले जनपद के पुलिस अधीक्षक ई राज राजा बार बार स्थानीय पुलिस को निर्देश देते हैं कि कोई भी ऐसा काम नहीं होना चाहिए जिससे पुलिस की छवि को बट्टा लगे परंतु स्वयम स्वार्थ लिप्सा में डूबे अधिकारी अपने उच्चाधिकारियों को भी नकार देते हैं उन्हें भी झूठी रिपोर्ट देने से नहीं चूकते आखिर ऐसे लोगों पर समय समय पर कार्यवाहियां भी होती हैं अब आगे फिर बताते हैं कि मामला कोर्ट में और पुलिस दलाल टाइप के माननीय जिन्हें भू माफिया बनने का शौक चढ़ गया उन्होंने अपने राज मे एक नहीं कई जगह लोगों को इसी बात से कब्जा करवाया कि तुम करो खर्चा हम करेंगे सफल हो गए तो आधा आधा इसी लालच में उन्होंने पूर्व के माननीयों के पास इधर उधर से घेरा बंदी कराई और किसी को कुछ पता तो था नहीं कि इसमे चाल किसकी है और लोग वे वजह अनजाने में माननीय के अंक बढ़ा बैठे जब लोगों को पता चला कि इसमे साजिश किसकी है तो अब लोग पछता रहे माननीय ने लालच देकर जनबल और धनबल इकट्ठा किया और पुलिस और प्रशासन पर दबाव बनाया परंतु वे भूल गए कि मामला कोर्ट का है कोर्ट के बाहर यदि सामाजिक सामंजस्य से निबट जाये तो बहुत अच्छी बात तो पुलिस ने और माननीय ने कोई पहल नहीं की बल्कि दूसरे पक्ष को उकसाते रहे अभी हाल में थाना दिवस में पहुंचे जहाँ स्थानीय पुलिस अधिकारियों ने धनबल के आगे नतमस्तक होते हुए अपने ही उच्चाधिकारियों को गुमराह कर दिया और आनन फानन में पूरा पुलिस बल ग्राम देवकली पहुंचा जहाँ मौक़े पर कब्जा धारक के परिवार के मुखिया घर पर नहीं थे परंतु मानो पुलिस को मौका मिल गया हो नायब तहसील दार हरदीप, लेखपाल प्रमोद दुबे, कोतवाल अशरफ, एस आई अमर सिंह, मो. वसीम आदि ने सामान फेकना शुरू करवा दिया घर पर नवबालिग बच्ची गायत्री घर पर थी वह रोने लगी उससे छोटा भाई भी रोने लगा उसने कोर्ट की जानकारी पुलिस को देनी चाही तो अधिकारी हँसते हुए उपहास उड़ाते हुए बोले कि इन्हे कोर्ट ले जाओ और गायत्री और उसकी बहिन को सरकारी गाड़ी में बंधक बना लिया गया अब चीखते चिल्लाते रहे कुछ देर में वहाँ जब उनके परिजन आये तो उन्होंने बच्चों को कैद करने का कारण पूंछा तो उनके साथ भी दबंगी दिखाई गई परंतु जब उन्होंने वीडीयो बनाना शुरू किया तब कही जाकर पुलिस और प्रशासन बैकफुट में आया परंतु आधा सामान खुद खड़े होकर ऐसे फिंकवाया मानो कोर्ट से बढ़ कर हो फिर नव बालिग बेटियों को गाड़ी में बंधक बना कर जाने कहाँ कहाँ लिवा गए और कह लाया जा रहा था कि माँ बाप को समझाओ वरना तुम्हारे भाई अश्वनी का बुरा हश्र कर देंगे रोती बिलखते हुए बहने बस इतना ही कहती कि कोर्ट जिसके पक्ष में निर्णय कर दे वही मान्य है अंत में थकी थकी सी बहने किसी से कुछ बोल नहीं रही गुमशुम सी रही और सुबह ही जब छोटी रोज की तरह अपने पशुओं का चारा पानी कर रही थी तो माननीय ने फिर उन्हें उकसाया और सब लाठी डंडे धारदार हथियार लेकर आ धमके और ताबड़ तोड़ मारना शुरू कर दिया जब घर में घुस कर मारपीट की गई तो बचाव में छोटी के बच्चे भी दौड़े और *जब साईयां हैं कोतवाल तो डर काहे का* पुलिस धन बल के आगे है नतमस्तक तो फिर क्या जब खून से लथपथ छोटी के परिजन थाने पहुंचे बजाये उनका इलाज कराने के उन पर समझौते का दबाव बनाना शुरू कर दिया लेकिन ब्लड ज्यादा निकल जाने से कराह रही गायत्री बेहोश हो गई तब कही जाकर इलाज को भिज वाया इतना ही नहीं छोटी के द्वारा दिया गया प्रार्थना पत्र लेकर रख लिया गया और माननीय के इशारे पर चल रही पुलिस ने छोटी के परिजनों के विरुद्ध मामला दर्ज कर लिया वो भी ऐसे ऐसे लोगों के नाम जो वहाँ थे भी नहीं नवबालिग गायत्री सहित दस वर्ष के भाई को भी पुलिस ने आरोपी बना दिया *वाह री पुलिस जो कुछ न करे कम ही है* बड़ी विडंबना ही कहेंगे कि रिफर के बावजूद भी पुलिस ने इलाज हेतु उरई नहीं भेजा और छोटी के पति को ही हिरासत में बिठा लिया जब परिजनों ने कहा कि वजह क्या है तब बड़ी देर बाद छोड़ा आखिर पुलिस इस प्रकरण में इतना एक पक्षीय क्यों रोल निभा रही ये बात हर कोई की जुबान पर है जन पद के न्यायप्रिय अधिकारियों की भी छवि धूमिल हो रही है पीड़ित छोटी का परिवार पुलिस के उच्चाधिकारियों से मिलने के बाद अपनी आप बीती सुनाने कोर्ट की शरण में जा सकता है लेकिन पुलिस द्वारा की गई नाइंसाफी उनके गले का फांस भी बन सकती है !
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