स्नेहलता रायपुरिया.......✍️✍️
उत्तर प्रदेश; जगम्मनपुर (जालौन)। जैसे-जैसे अयोध्या धाम में निर्मित मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि नजदीक आती जा रही है वैसे-वैसे ही 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के पहले उन्हें समूचे देश की नदियों के जल से स्नान कराने के लिये रामभक्त नदियों पर पहुंचकर कलश में पानी भरकर अयोध्या धाम पहुंचाने की जिम्मेदारी का निर्वहन करने में जुट गये हैं।
इसीक्रम में शुक्रवार को भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं कानपुर बुंदेलखंड क्षेत्र के क्षेत्रीय संयोजक पं. रामलखन औदीच्य के नेतृत्व में भाजपा जिलाध्यक्ष उर्विजा दीक्षित, शिवम जिला प्रचारक, डा. अखंड सिंह, शत्रुघन सिंह, विजय द्विवेदी, शैलेन्द्र सिंह राजावत गायत्री वर्मा चेयरमैन रामपुरा सागर सोनी राजकुमार द्विवेदी, सुनील निषाद प्रधान अभय चौहान सन्तोष प्रजापति पारस सेंगर अनिरुद्ध सेंगर पवन शीरोठिया एडवोकेट, योगेश शाक्यवार हरीओम तिवारी हरेंद्र सिंह राहुल सेंगर गुन्नू सेंगर सहित अनेकों नेता व कार्यकर्ताओं का कारवां जिला मुख्यालय से जगम्मनपुर स्थित पंचनद तीर्थ क्षेत्र पहुंचा जहां जय श्रीराम के गगनभेदी नारों के साथ कलश से पंचनद तीर्थ क्षेत्र का पानी भरा गया। यह कलश पं. रामलखन औदीच्य के नेतृत्व में 22 जनवरी के पहले अयोध्या धाम पहुंचाये जाने का सभी रामभक्तों ने संकल्प लिया। बताया जाता है कि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के पहले उन्हें देश की सभी नदियों के पानी से स्नान कराया जायेगा। देश की संत समाज में पंचनद तीर्थ क्षेत्र का बड़ा महत्व है। यह स्थान विश्व में इकलौता हैं जहां 5 नदियों का संगम होता है। जिसमें पंचनद में यमुना, चंबल, सिंध, कुंवारी और पहूंज नदियों का मिलन होता है। पचनद को महा तीर्थराज के नाम से भी जाना जात है। हर साल यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। शाम ढलने के साथ ही यहां का नजारा काफी खूबसूरत हो जाता है। वैसे तो पचनद को लेकर कई कहानियां भी काफी मशहूर हैं लेकिन इस कहानी की जिक्र हर कोई करता है। कहा जाता है कि महाभारत में पांडव अपने अज्ञातवास के दिनों में यहीं पचनद के आसपास ही रहते थे। भीम ने इसी स्थान पर बकासुर का वध किया था।
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तुलसीदास गोस्वामी ने ली थी एक ऋषि की अग्नि परीक्षा
जगम्मनपुर। पंचनद तीर्थ से जुड़ी एक और भी कहानी प्रचलित है। यहां के लोगों का मानना है कि यहां के ऋषि मुचकुंद की यशस्वी गाथा सुनकर एक बार तुलसीदास जी ने उनकी परीक्षा लेने की ठानी। तुलसी दीस जी इस जगह पर आए और पानी पिलाने के लिए आवाज लगाई। तब ऋषि मुचकुंद ने अपने कमंडल से जो जल छोड़ा वह कभी खत्म नहीं हुआ और तुलसीदास जी को ऋषि मुचकुंद के प्रताप को स्वीकार करना पड़ा और वह उनके सामने नतमस्तक हो गए।