जालौन। धरती पर जब अधर्म का बोलबाला होता है, तब भगवान का किसी न किसी रूप में अवतार होता है। भगवान चारांे दिशाओं में विद्यमान है। इन्हें प्राप्त करने का मार्ग मात्र सच्चे मन की भक्ति ही है। यह बात शनि धाम गूढ़ा न्यामतपुर में आयोजित श्रीराम कथा के तीसरे दिन कथा वाचक गुरूप्रसाद ने कही।
कथा वाचक गुरूप्रसाद ने भगवान राम के जन्म की व्याख्या करते हुए बताया कि सतकृपा के तप से भगवान ने राजा दशरथ व रानी कौशल्या के घर जन्म लिया। भगवान राम के जन्म की व्याख्या के दौरान जैसे ही कथा व्यास ने भजन गाया वैसे ही श्रोता झूम उठे। उन्होंने धर्म और संप्रदाय में अंतर को समझाते हुए बताया कि धर्म व्यक्ति को अंदर से एकजुटता का भाव पैदा करता है, वहीं सम्प्रदाय व्यक्ति को बाहरी रूप से एक बनाता है। मनुष्य की चार प्रजाति बताई। प्रथम नर राक्षस जो सदैव दूसरे को नुकसान पहुंचाता है। दूसरा नर पशु ये मनुष्य अपने जीवन को निरीह प्राणी की तरह जीते हैं। तीसरा सामान्य नर ये अच्छा जीवन यापन करते हैं एवं अच्छे संस्कार के होते हैं, लेकिन न तो किसी अच्छे का साथ देते है न तो बुरे लोगों को उनके कर्मांे में रोकने का प्रयास करते हैं। चौथे प्रकार का मनुष्य सबसे उत्तम प्राणी होता है वह अपने जीवन से परोपकार, धर्म व संस्कार, दूसरों की चिंता करता है। उन्होंने मर्यादा पुरूषोत्तम के गुणों को अपने जीवन में अपनाने की अपील की। इस मौके पर इस मौके पर पुजारी बृजेश तिवारी, रामजी, मोनू, सौरभ, अनिल कुमार, कल्लू, दिव्याशु, दीपक, शैलजा, मोहिनी, सुषमा आदि भक्त मौजूद रहे।