जितना बड़ा ठेकेदार उतना बड़ा पत्रकार ठेकेदारी के पैसों से खरीद लेते हैं पत्रकारिता

Dec 22, 2024 - 09:40
Dec 22, 2024 - 09:42
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जितना बड़ा ठेकेदार उतना बड़ा पत्रकार ठेकेदारी के पैसों से खरीद लेते हैं पत्रकारिता

पत्रकारिता मतलब प्रशासनिक अम्लों के साथ रहना व उनकी खबरें निकालना ही होता है

अपनी ठेकेदारी व दूसरे व्यापार में लिप्त लोग सिर्फ व्हाट्सएप पर अधिकारियों से खबर मंगा कर बन रहे पत्रकार

सोशल मीडिया के जमाने में अखबार की हार्ड कॉपियों का अस्तित्व होने जा रहा खत्म

बड़े-बड़े अखबार भी अपनी पीएफ के सर्कुलेशन के लिए बना रहे एजेंसी

अखबार नहीं पोर्टलों को हर माह लाखों रुपए का विज्ञापन देती है सरकार

उरई(जालौन)। 21वीं सदी में लोगों के जनजीवन में बहुत ही परिवर्तन आ चुका है क्योंकि आज लोगों के रहन-सहन व पाठ पठान का नवीनीकरण हो गया है आज बच्चे भी काफी किताबें छोड़ कंप्यूटर व ऑनलाइन से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं तो इस जमाने में हार्ड कॉपी का अस्तित्व लगभग खत्म होने जा रहा क्योंकि आज की सरकार भी लोगों को डिजिटल की ओर प्रेरित कर रही है जहां राशन भी डिजिटल तरीके से अंगूठा लगाकर मिलने लगा वहां आज लोग वही पुराने रवैया में अखबार को पढ़ने की बात कह रहे हैं जब खुद की बात आती है तो लोग गाड़ी के कागज भी मोबाइल पर पीडीएफ रूप में दिखाते हैं लेकिन वही अगर अखबार की बात आए तो जिसकी हार्ड कॉपी ज्यादा उसको बड़ा पत्रकार कहा जाता है लेकिन अगर मने तो बडा उसको कहा जाएगा जिसकी खबरें ज्यादा पढ़ी जाए । अगर इस दौर में देखा जाए तो ज्यादा खबरें सोशल मीडिया पर पढ़ी जाती है इसलिए आज का दौरा पोर्टल और पीएफ का ही है क्योंकि अपने कुछ निर्देशों में सरकार ने भी कहा है कि एक सीमा से अधिक व्यूवर होने पर हर माह लाखों रुपए का विज्ञापन पोर्टल को दिया जाएगा । ऐसे में जब सरकार भी ज्यादा व्यूवर वाले पोर्टलों को समर्थन कर रही है तो फिर दो चार हजार कॉपियां दरवाजे पर सुबह डालने वाले कैसे बड़े हो गए क्योंकि उन कॉपी में छपी चीज जो लोग सुबह 7:00 बजे पढ़ते हैं वह डिजिटल के जरिए लोग रात में 12:00 बजे ही पढ़ लेते हैं अब बात करें तालमेल की तो कुछ पुराने ढर्रे से दलाल लोग जो ठेकेदारी , टेलर गिरी, पंचर की दुकान, सट्टा व अवैध कार्य करने वाले लोग संरक्षण के लिए अखबारों का सहारा लेते हैं । और उन्हें मोटी रकम देकर पत्रकार बन जाते हैं जिसके रौब में उनकी ठेकेदारी जोरों पर चलने लगती है क्योंकि ऐसे ठेकेदार पत्रकार बन खबरें प्रत्यक्षीकरण ना कर घर पर ही खबरें मंगा कर अखबारों में छपवा देते है। जबकि पत्रकारिता का सही मायने यह है की समय अनुसार प्रशासनिक अमले को फॉलो करना उनके साथ रहना जिससे उनकी खबरों की प्रत्यक्षता लिखी जा सके क्योंकि एक पत्रकार प्रत्यक्ष दर्शी होता है और वह प्रत्यक्ष देखकर ही खबर का स्पष्टीकरण लिख पाता है ना की चापलूसी के जरिए अधिकारियों के द्वारा फोन पर बताई गई बात से कोई खबर लिखी जा सकती है इसलिए आज के दौर में ज्यादातर लोग फोन पर ही अधिकारियों से संपर्क कर उनकी बहबाई लूट पत्रकार बने हैं। जबकि प्रशासनिक अमला भी जानता है कि यह अवैध तरीके से ठेकेदारी व अवैध कार्य कर रहे । लेकिन एक बड़े अखबार का ठप्पा लगने के बाद अधिकारी भी इनसे कुछ कहने से मजबूर हो जाता है वही इसके दंस उन पत्रकारों को भी झेलने पड़ते हैं जो फील्ड में रहकर खबरें कबर करते हैं । क्योंकि अगर देखे तो हकीकत में पत्रकार व थे जो एक समय साइकिल से चलते थे और अधिकारी उन्हें स: सम्मान बुलाता था बिना उन पत्रकारों के कोई भी पत्रकार वार्ता शुरू नहीं होती थी तो क्या फॉर्च्यूनर और बड़ी बड़ी फोर व्हीलर से चलने वाले पत्रकार उन साइकिल वाले पत्रकारों से बड़े हो गए क्या या उनसे ज्यादा ज्ञान अर्जित कर लिया । इसका सीधा-सीधा तात्पर्य यह है की बड़ी गाड़ियों से चलने वाले यह लोग कहीं ना कहीं से तो पैसा अर्जित कर रहे हैं क्योंकि पत्रकार के पास इतना पैसा आना संभव नहीं है यह भली-भाँती सारी दुनिया जानती है क्योंकि रिपोर्टिंग करने वाला पत्रकार आज भी पुरानी साइकिल से पुरानी मोटरसाइकिल से ही चलता मिलेगा अगर वह ठेकेदारी करता मिल जाए तो समझ जाना कि यह पत्रकार नहीं व्यापार है क्योंकि इन लोगों की वजह से आज जिन्हें पत्रकारता का ज्ञान है वह अधिकारियों से सवाल तक नहीं पूछ पा रहे हैं क्यों ऐसे ठेकेदार जो अपना आय का स्रोत कहीं और से बने हुए और पत्रकारता का संरक्षण लिए हुए वह सिर्फ अधिकारियों के वर्जन फोन पर ही ले लेते हैं और व्हाइट भी उनके व्हाट्सएप पर पहुंच जाती है जिसमें अधिकारी सिर्फ अपनी वाहवाही करता है और ये चापलूस उनकी वाहवाही ही लूटना चाहते हैं क्योंकि उनके धंधे ही इसी से चल रहे हैं अगर एक पत्रकार की बात की जाए तो पत्रकार प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानता है जिसमें वह अधिकारी से वार्तालाप कर उसे क्रॉस प्रशन पूछता है जिसमें सत्यता सामने आती है जो आज के समय पूरी तरह खत्म हो चुकी है और अधिकारी सिर्फ फोन पर ही सारी चीज अपने फेवर में बता देता है और ऐसे पत्रकार जो एक मोटी रकम अपने ठेकेदारी के जरिए बड़े अखबारों बड़े व अन्य बड़े बैनरों को दे देते हैं और अपने ऊपर ठप्पा लगवा लेते हैं व कोई क्रॉस प्रशन कर ही नहीं पाते हैं और ना कभी कर पाएंगे क्योंकि उनके धंधे उन्ही आधिकारिक अमल से चल रहे हैं तो यह बहुत बड़ी विडंबना है कि हम हम से ही लड़ रहे हैं लेकिन यह कुछ ही समय के लिए रह गया है सरकार ने इन पर लगाम लगाने के लिए कई निर्देश जारी किए हैं जिसमें सरकार ने मीडिया को भी डिजिटल होने पर जोर दिया है और सरकार ने भी कहा है कि जिन न्यूज़ पोर्टलों के वियूवर एक लिमिट से ऊपर होंगे उसको सरकार वरीयता देगी और हर माह लाखों रुपए के विज्ञापन भी देगी तो ऐसे में यह कहा जाना की पोर्टल को मानता नहीं है यह हंसने वाली बात है क्योंकि आज के समय में सरकार भी पोर्टलों की तरफ अपना रुख कर रही है हां वह बात एक अलग है जो एक पुराने रिवाज से चला आ रहा है कि सरकार द्वारा एक रजिस्ट्रेशन नंबर जारी किया जाता था उसी को पत्रकार माना जाता था लेकिन अगर बात करें अखबार की या चैनल की तो उनमें जब खबरों की बात आती है तो करोड़ों खबरें निकलती है जो खबरें दब जाती हैं और जो अखबार या चैनल नहीं चला पाते हैं उनको इन्हीं पोर्टलों के जरिए लोगों तक पहुंचाया जाता है यह अथाय सत्य है क्योंकि चैनल 12 घंटे में जितनी खबरें चला सकता है उसे लाख गुना खबरें उस दिन में निकलती है जो कि समय अनुसार दब जाती है अगर पोर्टल ना हो तो उन खबरों को बाहर तक कोई नहीं ले जा सकता है इसलिए आने वाला युग सिर्फ और सिर्फ पोर्टल और पीएफ का है क्योंकि आज के समय में हर विभाग में लेटर भी पीएफ के जरिए और मेल के जरिए आते हैं जो कि पहले हार्ड कॉपी में डाक के जरिए आते हैं। तो जब हर सरकारी विभाग डिजिटल की ओर चला गया है तो पत्रकारिता क्यों नहीं डिजिटल की ओर जाएगी। इस चीज को लोगों को अपने जेहन में उतरना ही होगा क्योंकि एक समय लोग यह भी सोच रहे थे कि लोग उड़ेंगे कैसे जब तक हवाई जहाज का निर्माण नहीं हुआ था। और जब हो गया तो लोग उड़ रहे हैं और उसको सत्य मान रहे हैं इसी प्रकार यह बात भी आगे चलकर सत्य होगी । वहीं बात करें रामपुर की तो वहां भी कुछ ऐसे पत्रकार हैं जो कई वर्षों से ठेकेदारी कर रहे हैं और कुछ संस्थाओं को पैसा देकर अपने ऊपर पत्रकारिता का ठप्पा लगाए हैं और उसी पत्रकारता के दबाव के जरिए विभागों से ठेके लेते हैं मनरेगा के ठेकों में भी घुस जाते हैं और पत्रकारिता की दबाव के चलिते टीचरों पर भी दबाव डालते हैं और अपनी ठेकेदारी हार्ड कॉपी अखबार के नाम पर लोगों पर झाड़ते हैं ऐसे में लोगों को सतर्क रहना चाहिए क्योंकि आज के जमाने में हर आदमी के हाथ में डिजिटल बाबा है जो कि उसे अखबार से ज्यादा ज्ञान देता है जो अखबार सुबह पढ़ने को मिलेगा और अपने क्षेत्र की खबरें देगा । उससे लाख गुना खबरें वह डिजिटल बाबा दे देगा जो देश विदेश की खबरें एक सेकंड में ही लोगों पहुंचा देता है । ऐसे में इन ठेकेदारों पर लगाम लगानी चाहिए जो अधिकारियों पर इन बड़े बैनर की हार्ड कॉपियों का दबाव देकर अपने ठेके के आदेश करवा लेते हैं । क्योकि कोई भी अखबार व पत्रकार छोटा बडा नही होता है । पत्रकार सिर्फ पत्रकार होता है जब इस शब्द के आखिर में बड़े छोटे का डंडा नही लगाया जता है तो पत्रकारिता करने बाले कहाँ से छोटे बड़े हो जाते है इसीलिए सभी लोगो को पत्रकार को पत्रकार समझना चाहिए छोटा बड़ा नही क्योंकि छोटा बड़ा तो सिर्फ ठेकेदार होता है।

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