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वीरता सौर्य त्याग पराकृम और दृढ़ प्रण की प्रतिमूर्ति थे महाराणा प्रताप

कालपी (जालौन)। उदयपुर मेवाड़ में सिसोदिया राजपूत राजवंश में 9मई 1540को जन्मे महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया इतिहास में वीरता सौर्य त्याग पराकृम और दृढ़ प्रण के लिए के लिए अमर हैं।आज उनकी जन्म जयंती पर हम सभी देश वासी सत सत नमन करते हैं। उक्त बात अतुल सिंह चैहान महेवा सभासद नगर पालिका ने महाराणा प्रताप सिंह की जयंती पर उनके चित्र पर माल्यार्पण करने के बाद एक भेंट में कही। उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप का पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया था उनका जन्म मेवाड़ में हुआ था बचपन में उन्हें कीका नाम से पुकारा जाता था । महाराणा प्रताप को भारत का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी भी कहा जाता है। उन्होंने कहा भारत के इतिहास में जब भी पराकृमी और सूरवीर राजाओं की बात होती है तो महाराणा प्रताप का नाम जरूर लिया जाता है। महाराणा प्रताप एक अकेले ऐसे सूरवीर राजा थे जिन्होंने कभी मुगल बादशाह अकबर के आधीन रहना स्वीकार नहीं किया। 9मई 1540 को राजिस्थान में जन्मे महाराणा प्रताप अपने पिता महाराणा उदय सिंह और मां महारानी जयवंता बाई की सबसे बड़ी संतान थे।वह धन दौलत से ज्यादा मान सम्मान को चाहते थे और उनकी इस बात पर मुगल दरबार के कवि अब्दुल रहमान ने लिखा कि दुनिया में एक दिन सब खत्म हो जाएगा धन दौलत भी खत्म हो जाएगी लेकिन इंसान के गुण हमेशा जिन्दा रहेंगे।मुगल शासक अकबर कभी भी महाराणा प्रताप को अपने अधीन नहीं कर पाया और जब 57वर्ष की उम्र में 29 जनवरी 1597को अपनी राजधानी चावड़ में धनुष की डोर खींचते वक्त आंत में चोट लगने के कारण उनकी मृत्यु हो गई तो कहा जाता है कि अकबर इस खबर को सुनकर बहुत दुखी हुआ था। महाराणा प्रताप की देशभक्ति पर वह इतना प्रभावित हुआ था कि महाराणा की मौत पर उसके भी आंसू निकल आए थे।

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