उरई

सावन के पहले सोमवार के मौके पर नगर के प्राचीन श्री ठडेस्वरी मन्दिर मे भक्तों की उमड़ी भीड़

0 500 वर्ष पूर्व की गई थी ठड़ेस्वरी मंदिर की स्थापना
0 पूर्व से ही 0 डिग्री पर स्थापित है श्री हनुमानजी महाराज
0 पूर्व में एक जज द्वारा जाँच किये जाने के 0 डिग्री पर होने की हुई पुष्टी
0 दूर दूर से लोग आते है मंदिर में दर्शन करने

सत्येन्द्र सिंह राजावत
उरई(जालौन)। श्रवण मास के पहले सोमवार को उरई नगर के प्राचीन मंदिर पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी । और मंदिर में सुबह से लेकर शाम तक भक्तों का तांता लगा रहा । सावन महीने के पहले सोमवार को जनपद जालौन के उरई नगर के प्राचीन मंदिर पर भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी और सुबह से लेकर शाम तक भक्तों का तांता लगा रहा । इसके बाद जब हमारे सहयोगी ने वहां आए भक्तों से बात की तो भक्तों ने बताया कि यह बहुत ही प्राचीन मंदिर है जो की श्री ठडेस्वरी मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है और यहां सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है जिसको लेकर यहां भक्तों की अच्छी खासी भीड़ देखी जा सकती है और यहां दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामना लेकर आते हैं और उनकी मनोकामना पूर्ण होती है।

जब श्री ठडेस्वरी मन्दिर के बारे में मंदिर के महंत श्री सिद्धारामदास जी महाराज से जानकारी ली गई तो उन्होंने बताया कि यह मंदिर लगभग 500 वर्ष पुराना है जोकि एक तपस्वी ने बनवाया था। और उन्होंने मंदिर से लगभग 500 मीटर की दूरी पर एक तालाब किनारे एक पैर से खड़े होकर 20 साल तक लगातार तपस्या की थी जिनसे प्रसन्न होकर हनुमान जी महाराज ने मंदिर स्थापना की बात कही और उसी समय बैलगाड़ी से दूसरे जनपद में ले जा रही दो मूर्तियों को ले जा रहे लोगों ने रात में विश्राम के दौरान उस तालाब के 500 मीटर दूरी पर मूर्तियों को रख दिया फिर सुबह होने के बाद वह मूर्तियां किसी भी तरह से वहां से टस से मस ना हो सकी ना उनको लोग वहां से हिला सके मान्यता यह है की उन्हीं मूर्तियों की स्थापना के लिए हनुमान जी महाराज ने उन तपस्वी को आदेश दिया था और वह दो मूर्तियां एक साथ विराजमान हो गई जिसमें एक मूर्ति की ऊंचाई लगभग 8 फुट और उनका पूर्व दिशा की ओर है तो वहीं दूसरी मूर्ति जोकि लगभग 3 फुट की है उसका मुख दक्षिण की ओर है मान्यता यह है कि इस मंदिर का निर्माण उन तपस्वी द्वारा जब करवाया जा रहा था तब एक विशाल भंडारा किया गया था और उस भंडारे में घी कम पड़ गया था तो तपस्वी ने जिस तालाब के पास तपस्या की थी उस तालाब से 7 ड्रम पानी मंगवाया जोकि घी में परिवर्तित हो गया तब से ही मान्यता है कि यहां लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जिन तपस्वी ने एक पैर पर खड़े होकर दिन रात तपस्या की थी उनको श्री ठडेस्वरी महाराज के नाम से जाना जाने लगा और उन्हीं के नाम पर मंदिर भी आसपास के क्षेत्र में विख्यात हो गया तब से ही मान्यता चली आ रही है कि लोगों की हर मनोकामना पूर्ण होती है और जब उन मूर्तियों को प्रशासन द्वारा आज के समय में जांच करवाया गया तो वह मूर्तियां कंपास के हिसाब से जीरो डिग्री पर स्थापित थी जोकि आज के समय में भी लगभग असंभव है तो उस समय यह कैसे संभव हो सका इसको भी एक चमत्कार ही कहा जाएगा । और यही कारण है कि सावन के पहले सोमवार को श्री ठडेस्वरी मन्दिर मैं भक्तों की अपार भीड़ देखने को मिली। और यहां शिव जी की महा आरती भी की जाती है जिसको लेकर सावन के पूरे महीने इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है।
फोटो परिचय- महंत श्री सिद्धारामदास जी महाराज

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