उरई

भेड़ी में पट्टाधारक को किसने दी टीलों को नेस्तनाबूद करने की छूट

0 बड़ी तादाद में टीलों को अस्तित्व हुआ जमींजोद
0 कुआं जैसी खायियों का नदी किनारे दिखता नजारा

सत्येन्द्र सिंह राजावत

उरई (जालौन)। कालपी तहसील क्षेत्र के ग्राम भेड़ी के समीप से सदानीरा बेतवा नदी के मौरम खंड तीन भेड़ी जिसका पट्टा राना कन्ट्रक्शन के नाम से स्वीकृति हुआ था। लेकिन पट्टाधारक द्वारा मौरम खनन के नाम पर सबसे पहले तो नदी किनारे खेतों के नजदीक बने टीलों को ही अपना निशाना बनाते हुये रातों रात बड़ी तादाद में स्थित टीलों का ही अस्तित्व खत्म कर दिया और आज वहां कुआं जैसी खायिआं जगह-जगह देखी जा रही है। हैरानी की बात तो यह है कि ऐसे टीलों को नेस्तनाबूद करने की छूट पट्टाधारक को किसने दी यह एक ऐसा सवाल है जिसका जबाब शायद ही कोई जिम्मेदार अधिकारी दे पाने में सक्षम हो। इसके अलावा भी भेड़ी गांव के किसानों ने अंधाधुंध तरीके से मौरम खनन पर सवालियां निशान खड़ा कर दिया है।
इस संबंध में गांव के अनेकों किसानों ने नाम न छापने शर्त पर बताया कि यदि वास्तव में नदी किनारे के टीले व आम रास्ता पट्टा के सीमांकन में शामिल रहा है तो इससे पूर्व किसी पट्टाधारक ने न तो टीलों से खनन से किया और न ही चकरोड को ध्वस्त किया और न ही खेतों के समीप से मौरम का खनन नहीं किया। किसानों ने जिस तरह से सवालों की बौछार खड़ी कर दी है जिससे सीधे तौर पर तो क्षेत्रीय लेखपाल की निष्ठा भी संदेह के दायरे में आना लाजिमी है। फिर जनपद को खनिज दफ्तर जिसके पास हर मौरम खंड का प्राचीन नक्शा मौजूद है। जिससे आसानी से इस बात का सत्यापन हो सकता है कि पट्टाधारक मौरम खनन में अपनी स्वेच्छाचारिता दिखा रहा है कि नहीं। किसानों का तो यहां तक कहना है कि पट्टाधारक के अनेकों गुर्गें जहां से मौरम का खनन पाॅकलैंड मशीनों द्वारा किया जाता है उसके आसपास अपना घेरा बना लेते हैं जिससे किसान भी अपने खेतों की रखवाली करने नहीं पहुंच पाते हैं। किसानों का कहना था कि आज आलम यह है कि बेतवा नदी कि किनारे अधिसंख्य संख्या में जो टीले मौजूद थे उनका आज पूरी तरीके से अस्तित्व खत्म किया जा चुका है और टीलों के स्थान पर कुआं जैसी खायियां दिखायी देती हैं। किसानों का कहना था कि भारी भरकम मशीनें दिन में कम रात्रि के अंधेरे में ज्यादा सुगमता से मौरम का खनन करती है और जितनी गहराई तक मौरम मिलती है वह खोतदी जाती है। मौरम खनन कराने में कोई पैमाना फिक्स नहीं रहता है। जबकि कोई भी पट्टाधारक के नाम मौरम खनन का पट्टा स्वीकृत होता है तो वह शपथ पत्र देकर कहता है कि अधिकतम तीन मीटर गहराई से खनन करेंगा, नदी की जलधारा के किनारे से मौरम खनन नहीं होगा। पुराने चकरोड या फिर खेतों के समीप से भी बालू का खनन नहीं होगा। लेकिन लगता है कि पट्टाधारक लाल सोने की चमक देखकर उसकी आंखों पर पट्टी चढ़ जाती है और फिर वह हर वह काम करता है जिससे कि उसको लाभ मिले। यही कारण है कि भेड़ी के मौरम खंड संख्या तीन का पट्टाधारक मौरम खनन के नाम पर खेला करने में लगा हुआ है।
फोटो परिचय—
नदी किनारे के टीलों से होता मौरम खनन।

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