जालौन

धनुष यज्ञ की लीला का मंचन देख भक्त हुए भाव विभोर

रिपोर्टअनुराग श्रीवास्तव सम्पादक सत्येन्द्र सिंह राजावत

जालौन (उरई)। नगर की ऐतिहासिक रामलीला के 175 वें मंचन में शिवजी का पिनाक धनुष तोड़कर प्रभु श्रीराम सीता के वर हुए। इस दृश्य को देखकर दर्शक भाव विभोर हो उठे। उधर, धनुष यज्ञ के बाद घंटों तक लक्ष्मण और परशुराम के बीच चुटीले संवाद चलते रहे। जिसका दर्शकों ने जमकर आनंद लिया।

रामलीला भवन पर रामलीला का ऐतिहासिक 175 वां मंचन चल रहा है। मंचन के पांचवे दिन धनुष यज्ञ से परशुराम, लक्ष्मण संवाद तक की लीला का मंचन किया गया। जनकपुर में होने वाले स्वयंवर की खबर सुनकर देश विदेश के राजा व राजकुमार आए। धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने से पूर्व रावण जब जनक के दरबार में पहुंचा, तो उसे भगवान राम के दर्शन हुए। श्रीराम के दर्शन होने के बाद रावण ने उनका परिचय लिया और बिना धनुष तोड़े ही लंका लौट गया। इसके बाद सभी राजाओं ने धनुष हिलाने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे। इस पर राजा जनक ने जब शोक प्रकट किया तो गुरु विश्वामित्र ने श्रीराम को धनुष तोड़ने की आज्ञा दी, जिस पर श्रीराम ने शिवजी का धनुष जरा सी कोशिश में ही तोड़ दिया। प्रभु श्रीराम ने जैसे ही भगवान शिवजी का धनुष तोड़ा, जनकदुलारी सीता ने वरमाला श्रीराम के गले में डाल दी। सीता स्वयंवर का यह दृश्य देख उपस्थित दर्शकगण भक्ति के सागर में डूब गए। जब शिव धनुष टूटने की खबर परशुराम को मिली तो वह क्रोधित होकर स्वयंवर स्थल पर पहुंच गए। उन्होंने कहा कि जिसने भी यह धनुष तोड़ा है वह मेरा शत्रु है। वह सामने आ जाएं नहीं तो सारे राजा मारे जाएंगे। लक्ष्मण यह सुनकर मुस्कुराए और बोले, बचपन में तो हमने बहुत से धनुष तोड़े हैं लेकिन आप क्रोधित नहीं हुए। लक्ष्मण उन्हें चिढ़ाते हैं जिससे परशुराम क्रोधित हो उठते हैं। घंटे तक परशुराम और लक्ष्मण के बीच चले संवाद के बाद प्रभु श्रीराम परशुराम से प्रार्थना कर क्षमा मांगते हैं। तब कहीं जाकर उनका क्रोध शांत होता है। रामलीला के मंचन में श्रीराम की भूमिका विवेक मिश्रा , जानकी रामदूत तिवारी , लक्ष्मण के के शुक्ला , परशुराम जेडी शुक्ला एवं जनक की भूमिका रमेशचंद्र दुबे, विश्वामित्र नरेंद्र ने निभाई। रामलीला के संचालन में पवन चतुर्वेदी, प्रयाग गुरू, राजकुमार मिझौना ने सहयोग किया।

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