0 सपा-कांग्रेस के दावेदार खुद का टिकट पक्का होने का कर रहे यकीन
0 किसे मिलेगा टिकट, कौन होगा निराश चर्चाओं का बाजार गर्म
माधौगढ़ (जालौन)। जनपद की माधौगढ़ सीट पर विधानसभा चुनाव में रोचक मुकाबला देखने को मिल रहा है। यही कारण है कि यहां से प्रत्याशियों के टिकटों में भी कड़ा मुकाबला चल रहा है। खासकर समाजवादी पार्टी के टिकट पर सबकी निगाहें अटकी हैं। बसपा ने काफी पहले शीतल कुशवाहा का टिकट फाइनल कर दिया है लेकिन अन्य किसी भी दल से सुगबुगाहट भी नहीं निकल रही है। कांग्रेस ने जिला की दोनों सीट पर प्रत्याशी घोषित कर दिए जबकि माधौगढ़ सीट पर 19 दावेदारों के बाद भी नाम तय नहीं हुआ। सिद्धार्थ दीवौलिया, अलका सेंगर, नीता मिश्रा, राजेश मिश्रा, अरविंद सेंगर के नाम प्रमुखता से हैं। वह कांग्रेस से एक मजबूत दावेदार माने जाते हैं। जिला में दो महिला नाम घोषित हो चुके हैं। तो सम्भवतः महिला के नाम पर सहमति न बने।
माधौगढ़ सीट पर अस्सी के दशक के बाद से सबसे ज्यादा बसपा ने बाजी मारी है, मोदी लहर में भाजपा ने सीट जीत ली। सपा ने अभी तक कभी यहां विजय नहीं पाई। जबकि माधौगढ़ विधानसभा इटावा जनपद की सीमा से लगी है यही कारण है कि पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के समय इसी विधानसभा को सबसे ज्यादा पुलों की सौगात मिली। फिर भी मतदाताओं ने हमेशा ही सपा को खाली हाथ ही लौटाया। पहली बार समाजवादी पार्टी को मतदाता लड़ाई में मान रहा है। इसलिए सबसे ज्यादा चर्चा सपा के टिकट पर हो रही है। सपा पार्टी से पूर्व मंत्री हरीओम उपाध्याय, पूर्व जिला पंचायत सदस्य दीपराज गुर्जर, अशोक राठौर, राघवेन्द्र सिंह अमखेड़ा, जिला सचिव प्रबल प्रताप सिंह, राजा केशवेंद्र सिंह टिकट की चर्चा में है। हरिओम उपाध्याय भाजपा से सपा में आये हैं, उनकी पैरवी महान दल के अध्यक्ष केशवदेव मौर्य पुरजोर तरीके से कर रहे हैं। बसपा और भाजपा में सेंध कर मजबूत दावेदारी पेश कर रहे है। इसके अलावा अगर यह सीट ब्राह्मण के खाते में जाती है तो उनके सामने कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं है। वहीं युवाओं में काफी लोकप्रिय दीपराज गुर्जर पांच सालों से माधौगढ़ विधानसभा में खूब मेहनत कर रहे हैं। सत्ता के विरोध में एक-एक आंदोलन को सफल बनाने में माधौगढ़-रामपुरा पूरी ताकत झोंक चुके हैं। पार्टी के प्रति पूरी तरह से निष्ठावान हैं। अशोक राठौर भी सपा से उम्मीदवार हैं, हालांकि पार्टी में सक्रिय रहे हैं लेकिन माधौगढ़ क्षेत्र में ढीली पकड़ है। बिरादरी और सपा का वोट बैंक ही मजबूत आधार है। संगठन के पदाधिकारी के बीच अपनी पैठ जरूर बनाने में सफल हुए हैं। इसके अलावा क्षत्रियों में राजा केशवेंद्र सिंह शुरू में काफी सक्रिय हुए लेकिन अचानक से पीछे हटे, फिर से सोशल मीडिया पर एक्टिव हुए। असमंजस में अपनी प्रत्याशिता बनाये हुए हैं। हालांकि मजबूत हैं, पूर्व प्रत्याशी रहे हैं। राघवेन्द्र सिंह अमखेड़ा कम समय में पार्टी में लोकप्रिय हुए। पार्टी अध्यक्ष से सीधे संबंध, पार्टी कार्यकर्ताओं से बेहतर तालमेल, नपीतुली राजनीति में माहिर। मप्र सीमा से सटे गांवों में अप्रत्यक्ष रूप से मजबूत, मप्र कांग्रेस के बहुत बड़े नेता के अनुभव और सहयोग से लखनऊ में मजबूत हैं। सपा के जिला सचिव प्रबल प्रताप सिंह जमीनी कार्यकर्ता के साथ गांव-गांव मेहनत में जुटे हैं। टिकट की मजबूती से मांग रहे हैं यदि पार्टी ने उनके नाम पर अपनी मोहर लगायी तो वह भी पूरी मजबूती से चुनावी मैदान फतह करने के लिये तैयारियों को पूर्ण कर चुके है। वह क्षेत्र में सपा का झंडा लंबे समय से उठाकर अनेकों आंदोलनों में अपनी सक्रिय भूमिका भी शामिल रहे। फिलहाल तो सपा अपने स्तर से कई सर्वे करा चुकी है। प्राइवेट एजेंसियां और पार्टी संगठन के सर्वे में जो सीट निकालने की स्थिति में होगा, टिकट उसी का तय होगा।
फोटो परिचय—
समाजवादी पार्टी के दावेदार।
फोटो परिचय—
कांग्रेस के दावेदार।