उरई

अनेकों प्रयासों के बाद भी मतदान का प्रतिशत न बढ़ना चिंतन का विषय

सत्येन्द्र सिंह राजावत
उरई (जालौन)। बीस फरवरी को जनपद की तीन विधानसभा क्षेत्रों में हुये मतदान के दौरान शहरी क्षेत्रों से लेकर ग्रामीणांचल में चलाये गये मतदाता जागरूकता अभियान मतदान के दिन मतदाताओं पर कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाया। यही कारण रहा है कि उरई विधानसभा में 61.01 फीसदी, कालपी में 60.09 फीसदी व माधौगढ़ में सबसे कम 57.89 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने-अपने मताधिकार का प्रयोग किया।
वैसे तो हर चुनाव में मतदाताओं को जागरूक करने की मंशा से मतदाता जागरूकता अभियान प्रशासन स्तर पर ही नहीं बल्कि अनेकों संस्थाओं के साथ ही समाजसेवियों द्वारा अपने-अपने तरीके से मतदाताओं को मतदान के दिन अपने मत का प्रयोग करने के लिये जागरूक किया जाता रहा है। लेकिन जब चुनाव में मतदान का दिन होता है तो आंकड़ा वहीं पर आकर अटक जाता है। यह इस बात का द्योतक हैं कि मतदाता आज भी अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिये जागरूक नहीं है। बात की जाये विधानसभा चुनाव में तीसरे चरण में उरई विधानसभा में 4 लाख 44 हजार 417 मतदाताओं में से 2 लाख 71 हजार 538 लगभग मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया जो 61.01 प्रतिशत रहा है। इसी प्रकार से कालपी विधानसभा में टोटल मतदाता 3 लाख 93 हजार 574 हैं जिसमें मतदान के दिन 2 लाख 39 हजार 686 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया जो 60.09 प्रतिशत रहा है। जबकि माधौगढ़ विधानसभा में टोटल मतदाता 4 लाख 44 हजार 475 थे जिसमें से 2 लाख 57 हजार 306 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर मतदान का प्रतिशत 57.89 पर आकर ठहर गया। हैरानी इस बात कि मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करने के प्रति क्यों जागरूक नहीं हो पा रहा है या फिर वह जानते बूझते अपने मताधिकार का प्रयोग करने पोलिंग बूथों तक जाता ही नहीं हैं। इस बारे में राजनैतिक दलों के साथ ही समाज के जागरूक लोगों के लिये चिंतन का विषय हो सकता है।

पंचायत व निकाय चुनावों में मतदान प्रतिशत कैसे हो जाता ज्यादा

उरई। विधानसभा या लोकसभा चुनावों में मतदान का प्रतिशत भले ही कम रहता हो लेकिन जब भी पंचायत व निकाय चुनाव होते हैं तो मतदान का प्रतिशत क्यों बढ़ जाता है। इसके पीछे की मुख्य बजह क्या हो सकती है। जब इस संबंध में समाजसेवी बृजेश त्रिपाठी से बात की गयी तो उन्होंने स्पष्ट किया कि आज भी जनपद में बड़ी तादाद में मतदाताओं के दोहरे मतदाता पहचान पत्र बने हुये हैं। ऐसी स्थिति में जिन मतदाताओं का शहरी व ग्रामीणांचल दोनों स्थानों पर मतदाता है वह एक स्थान पर ही अपने मताधिकार का प्रयोग कर लेता है। और जब पंचायत चुनाव होता है तो वह अपने गांवों में पहुंचकर वहां पर अपने मताधिकार का प्रयोग करता है। जिससे पंचायत चुनावों में मतदान का प्रतिशत बढ़ जाता है। ऐसा ही निकाय चुनावों में होता है। बड़ी संख्या में गांवों के लोगों के मकान शहरी क्षेत्रों में बने हुये हैं जिससे वह शहरी क्षेत्रों से भी मतदाता बन जाता है। और जब निकाय चुनाव होते हैं तो वह गांवों से आकर यहां पर भी मतदान कर मतदान का प्रतिशत बढ़ाकर वापस लौट जाता है।

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