जालौन

नगर और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिबंधित पेड़ों की अवैध कटान पर नही लग पा रही रोक

बबलू सेंगर महिया खास

जालौन। नगर और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिबंधित पेड़ों की अवैध कटान और बिक्री का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। रविवार को बंगरा रोड स्थित एक आरा मशीन पर प्रतिबंधित सागौन की लकड़ी की चिराई खुल्लमखुल्ला की जा रही थी। स्थानीय लोगों ने जब यह दृश्य देखा तो तत्काल वन विभाग को सूचना दी, लेकिन विभाग की ओर से गंभीरता नहीं दिखाई गई। रेंजर ने स्वयं नगर से बाहर होने का हवाला देकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर वन विभाग इतनी बड़ी गड़बड़ियों पर आंखें क्यों मूंदे बैठा है।
सरकार द्वारा औषधीय और संरक्षित श्रेणी के वृक्षों की कटान पर पूरी तरह रोक लगाई गई है। इसके बावजूद विभागीय उदासीनता और मिलीभगत के चलते लकड़ी माफिया लगातार सक्रिय हैं। लकड़ी माफिया पुराने परमिटों की आड़ लेकर वर्षों तक कटान और बिक्री का काम करते रहते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि आरा मशीन पर सागौन की चिराई महज एक उदाहरण है, जबकि हकीकत में कई अन्य स्थानों पर भी शीशम, नीम और औषधीय वृक्षों की अवैध कटान हो रही है। सागौन की लकड़ी की बाजार में ऊंची कीमत मिलने के कारण इसकी मांग बनी रहती है, जिसका फायदा उठाकर कुछ लोग काले कारोबार में जुटे हुए हैं। नागरिकों ने मांग की है कि वन विभाग पुराने परमिटों की आड़ में हो रही इस अवैध गतिविधि पर तत्काल रोक लगाए और दोषियों पर सख्त कार्रवाई करे। गौरतलब है कि पूर्व में भी नीम के वृक्षों की कटाई के वीडियो वायरल हो चुके हैं, लेकिन कार्रवाई के बजाय मामले दबा दिए गए। अब सवाल उठ रहा है कि क्या वन विभाग वास्तव में अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है या मिलीभगत से माफिया को संरक्षण दे रहा है। इस संबंध में जब वन क्षेत्राधिकारी हरीकिशोर शुक्ला से बात की गई तो उन्होंने कहा कि वे बाहर हैं और उन्हें मामले की जानकारी नहीं है।

-अवैध कटान का जाल: खुलेआम नियमों की अनदेखी-


औषधीय और संरक्षित श्रेणी के वृक्षों की कटान पर सरकार ने सख्त रोक लगाई है। इनमें नीम, शीशम, सागौन जैसे कीमती पेड़ शामिल हैं। ये पेड़ न केवल पर्यावरण के संतुलन के लिए जरूरी हैं, बल्कि कई औषधीय और व्यावसायिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। इसके बावजूद लकड़ी माफिया धड़ल्ले से कटान कर रहे हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि पुराने परमिटों की आड़ लेकर वर्षों तक पेड़ों की कटाई और लकड़ी की बिक्री का धंधा चलता है। परमिट केवल एक निश्चित समय और संख्या के लिए जारी किए जाते हैं, लेकिन विभागीय मिलीभगत से उनका इस्तेमाल सालों-साल किया जाता है।

-आरा मशीन बना अवैध कारोबार का अड्डा-
बंगरा रोड, चुंगी नंबर चार आदि स्थानों पर प्रतिबंधित लकड़ी की लगातार चिराई हो रही है। वहां से गुजरने वाले लोग अक्सर प्रतिबंधित लकड़ी की चिराई के दृश्य देखते रहते हैं। दरअसल, यह आरा मशीनें अक्सर लकड़ी माफियाओं के लिए सेफ ज़ोन का काम करती हैं। दिन में सामान्य कारोबार दिखाकर रात के अंधेरे में या छुट्टियों के दौरान अवैध चिराई का काम होता है।

-स्थानीय नागरिकों का आक्रोश-


मामले को देखने वाले स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यह घटना कोई अपवाद नहीं है, बल्कि सच्चाई यह है कि नगर और आसपास के कई क्षेत्रों में यही खेल चल रहा है। नागरिकों ने आरोप लगाया कि विभागीय कर्मचारी जानबूझकर कार्रवाई से बचते हैं और कभी-कभी सीधे लाभ भी उठाते हैं। उनका कहना है कि जिस तरह से पहले नीम के पेड़ों की अवैध कटाई के वीडियो वायरल हुए थे और फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई, उससे साफ जाहिर है कि इस पूरे खेल में मिलीभगत है।

-पर्यावरणीय खतरा और भविष्य की चुनौती-


विशेषज्ञ बताते हैं कि सागौन, शीशम और नीम जैसे वृक्ष न केवल लकड़ी की दृष्टि से कीमती हैं, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन के लिए भी बेहद जरूरी हैं। सागौन की लकड़ी मजबूत और टिकाऊ होने के कारण फर्नीचर उद्योग में भारी मांग रखती है। नीम औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण औषधि, साबुन और कॉस्मेटिक उद्योग में उपयोग होती है। इनकी अंधाधुंध कटाई से न केवल हरियाली का नुकसान हो रहा है, बल्कि स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर भी बुरा असर पड़ रहा है। भू-जल स्तर, मिट्टी की उर्वरता और छाया प्रदान करने वाली हरियाली पर भी संकट बढ़ता जा रहा है।

-वन विभाग की ढिलाई पर उठे सवाल-


वन विभाग का कार्यक्षेत्र ही वन संपदा की सुरक्षा और संरक्षण है। लेकिन जब इसी विभाग के अधिकारी मौके से बचने लगें और जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लें, तो मामला गंभीर हो जाता है। जब इस संबंध में वन क्षेत्राधिकारी हरीकिशोर शुक्ला से बात की गई तो उन्होंने कहा कि वह नगर से बाहर हैं और उन्हें इस घटना की जानकारी नहीं है। सवाल यह उठता है कि यदि जिम्मेदार अधिकारी मौके पर नहीं हैं तो विभागीय स्टाफ क्या कर रहा है।

-कानूनी पहलू और दंडात्मक प्रावधान-


भारतीय वन अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण कानूनों के तहत प्रतिबंधित वृक्षों की कटाई और अवैध व्यापार दंडनीय अपराध है। दोषी पाए जाने पर न केवल जुर्माना बल्कि कारावास तक का प्रावधान है। बावजूद इसके, कानून का उल्लंघन खुलेआम हो रहा है। जानकारों का कहना है कि यदि वन विभाग सख्ती से कार्रवाई करे तो लकड़ी माफिया टिक ही नहीं सकते। लेकिन जब कार्रवाई ही न हो और पुराने परमिटों की आड़ में सबकुछ वैध दिखाने की कोशिश की जाए, तो अपराधियों के हौसले बुलंद होना लाजिमी है।

-ग्रामीण अंचल में सबसे ज्यादा नुकसान-


नगर ही नहीं, बल्कि इसके आसपास के ग्रामीण अंचलों में भी अवैध कटान का खेल चलता है। गांवों में निगरानी कम होने की वजह से यहां पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है। ग्रामीण बताते हैं कि कई बार रात के अंधेरे में ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में भरकर लकड़ी बाहर भेज दी जाती है। दिन में यह काम बहुत ही सावधानी से किया जाता है, ताकि किसी को शक न हो।

लोगों ने मांग की है कि आरा मशीनों की नियमित जांच होनी चाहिए और उनके लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई की जानी चाहिए। पुराने परमिटों की समीक्षा अनिवार्य रूप से होनी चाहिए, ताकि उनकी आड़ में हो रहे दुरुपयोग पर रोक लगे। सागौन की चिराई केवल एक मामला नहीं है बल्कि उस बड़े तंत्र की ओर इशारा करता है जो सालों से अवैध कटान और व्यापार में लिप्त है। अगर समय रहते इस पर रोक नहीं लगाई गई, तो न केवल वन संपदा का नुकसान होगा बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए हरियाली, शुद्ध वायु और औषधीय वृक्षों की कमी एक गंभीर संकट बनकर सामने आएगी। जरूरत है कि वन विभाग इस पर तुरंत कड़ी कार्रवाई करे और जिम्मेदार अधिकारियों को भी जवाबदेह बनाया जाए।

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