अनुराग श्रीवास्तव के साथ बबलू सिंह सेंगर महिया खास
जालौन(उरई)। जब भी भक्तों पर कोई विपदा आन पड़ी है। तो प्रभु उसके तारण के लिए अवश्य आए हैं। यह बात मोहल्ला काशीनाथ में आयोजित भागवत कथा के अंतिम दिन कथा व्यास पं. सुरेंद्रनाथ द्विवेदी ने कही। मोहल्ला काशीनाथ में प्रेमनारायण सोनी के आवास पर आयोजित श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ के अंतिम दिन कथावाचक पं. सुरेंद्रनाथ द्विवेदी ने कृष्ण की अलग-अलग लीलाओं का वर्णन किया गया। मां देवकी के कहने पर छह पुत्रों को वापस लाकर मां देवकी को वापस देना। सुभद्रा हरण का आख्यान कहना आदि प्रसंग को उन्होंने बताया। अंत में सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए बताया कि मित्रता कैसे निभाई जाए। यह भगवान श्रीकृष्ण और सुदामाजी से समझ सकते हैं। कहा कि सुदामा अपनी पत्नी के आग्रह पर अपने मित्र सुदामा से मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे। द्वारिका पहुंचने पर सुदामा ने द्वारिकाधीश के महल का पता पूछा और महल की ओर बढ़ने लगे। हल के द्वार पर द्वारपालों ने सुदामा को भिक्षा मांगने वाला समझकर रोक दिया। तब उन्होंने कहा कि वह कृष्ण के मित्र हैं। जब द्वारपाल महल में गए एवं प्रभु से कहा कि कोई उनसे मिलने आया है और अपना नाम सुदामा बता रहा है। जैसे ही द्वारपाल के मुंह से उन्होंने सुदामा का नाम सुना, प्रभु सुदामा सुदामा कहते हुए तेजी से द्वार की तरफ भागे सामने सुदामा सखा को देखकर उन्होंने उसे अपने सीने से लगा लिया। सुदामा ने भी कन्हैया कन्हैया कहकर उन्हें गले लगाया दोनों की ऐसी मित्रता देखकर सभा में बैठे सभी लोग अचंभित हो गए। प्रभु श्री कृष्ण ने सुदामा को अपने राज सिंहासन पर बैठाया। उन्हें कुबेर का धन देकर मालामाल कर दिया। बताया कि जब भी भक्तों पर विपदा आ पड़ी है। प्रभु उनका तारण करने अवश्य आए हैं। इस मौके पर प्रोमनारायण सोनी, मन्नी सोनी, शिवकुमार सोनी, संजय कुमार उर्फ संजू आद मौजूद रहे।