ललितपुर

गायत्री मन्त्र से भस्म होते हैं सब क्लेश- विष्णुमित्र वेदार्थी बिजनौर

 

गायत्री मंत्र से हम उत्तम बुद्धि की याचना करते हैं– प्राचार्य डॉ अशोक रस्तोगी अमरोहा

अभय प्रताप सिंह
महरौनी(ललितपुर)– महर्षि दयानन्द सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्त्वाधान में हर घर वेद एवं वैदिक धर्म पहुंचाने के उद्देश्य से संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य द्वारा ऑनलाइन आयोजन किये जा रहे है इसी क्रम में वैदिक प्रवक्ता आचार्य विष्णुमित्र वेदार्थी एवं सारस्वत अतिथि डॉ अशोक आर्य सम्पादक आर्यावर्त केसरी अमरोहा एवं बाबूलाल द्विवेदी बिल्ला की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ।
मुख्य प्रवचन कर्ता वैदिक विद्वान आचार्य विष्णुमित्र वेदार्थी बिजनौर ने गायत्री मंत्र विचार विषय भाग 1 पर बोलते हुए कहा कि गायत्री मन्त्र का उपासकों के मध्य में बहुत आदर है। इसका जप ॠषि- मुनि आदि सभी करते आये हैं। महर्षि दयानन्द सरस्वती ने भी सन्ध्या में इस मन्त्र को अतिमहत्त्वपूर्ण स्थान दिया है। इसके महत्त्व का कारण यह है कि इसमें प्रभु भजन के तीनों प्रकार – स्तुति, प्रार्थना व उपासना विद्यमान हैं।स्तुति का अर्थ गुणगान करना है। जो वस्तु जैसी है उसे वैसी ही जानना,मानना व तदनुसार यथार्थ कथन करना स्तुति है।यह स्तुति ईश्वर,जीव व प्रकृति तीनों की की जाती है, किन्तु इसमें यह ध्यान रखना अति आवश्यक है कि जीव , प्रकृति व प्राकृतिक पदार्थों का यथायोग्य वर्णन सांसारिक व्यवहार में ही किया जाता है। सांसारिक आंगन से पृथक् आध्यात्मिक आंगन में जहां इन्द्रिय व मन की नहीं चलती अपितु जहां आत्मा का राज्य चलता है उस आध्यात्मिक आंगन में केवल प्रभु ही स्तुत्य है।इस विषय में पूज्य महर्षि जी पञ्चमहायज्ञविधि में सन्ध्या की व्युत्पत्ति करते हुए लिखते हैं – सन्ध्यायन्ति सन्ध्यायते वा परब्रह्म यस्यां सा सन्ध्या अर्थात् जिसमें परब्रह्म का ही चिन्तन किया जाता है उस अनुष्ठान का नाम सन्ध्या है । स्तुति से प्रभु के प्रति अति प्रेम , उसके गुण, कर्म व स्वभाव से अपने गुण कर्म व स्वभाव का सुधारना व महान् यश की प्राप्ति होना आदि सिद्ध होते हैं।प्रभु भजन का दूसरा साधन – प्रार्थना है। अपने पूर्ण पुरुषार्थ के उपरान्त परमेश्वर वा किसी सामर्थ्यवान् से सहायता प्राप्त करना प्रार्थना है। प्रार्थना की इस परिभाषा से ही विदित हो जाता है कि प्रार्थना चेतन से ही हो सकती है अचेतन से कभी नहीं,क्योंकि अचेतन पदार्थ सूर्य, नदी आदि तो अचेतन होने के कारण हमारी प्रार्थना को समझने में भी सक्षम नहीं हैं। हम जिनसे प्रार्थना कर सकते हैं वे परमेश्वर व जीव नामक हैं। यह प्रार्थना भी आध्यात्मिक आंगन में परमेश्वर की ही करनी योग्य है। प्रार्थना से अभिमान का नाश, प्रभु से सहायता का प्राप्त होना तथा आत्मा का बल इतना बढ़ता है कि यदि कभी निजकर्मानुसार पहाड़ की तरह दारुण कष्ट भी आ जाये तो उसे सहन करने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। तीसरी उपासना है -योगाभ्यास करके प्रभु का सामीप्य प्राप्त करना उपासना है। हमारे व परमेश्वर क बीच में स्थान व काल की दूरी नहीं है,केवल ज्ञान की दूरी है। इसी दूरी को योगाभ्यास से दूर किया जाता है ।

आर्यावर्त केसरी (अमरोहा) के प्रधान संपादक तथा के.ए.स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कासगंज के प्राचार्य डॉ. अशोक कुमार रस्तोगी ने कहा कि “गायत्री मंत्र” गुरु मंत्र है। इसमें ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि हे सविता देव परमात्मा! हमारी बुद्धियों को प्रेरणा करो, अर्थात् बुरे कामों से छुड़ाकर अच्छे कामों में प्रवृत्त करो। इस मंत्र में ईश्वर के विभिन्न नामकरणों के साथ “ओ३म” परमात्मा के निज नाम का भी उल्लेख है तथा यह प्रार्थना है कि हे प्रभु! मैं तेरे दिव्य निर्मल स्वरूप का ध्यान करता हूं मैं तुमको वरता हूं, अपनाता हूं, अपने को तेरे अर्पण करता हूं मेरी बुद्धि और मेरे कर्म को तू अपनी ओर ले चल।
कार्यक्रम का शुभारंभ कविता आर्या दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय भजनोपदेशिका द्वारा प्रभु भक्ति के सुमधुर भजनों ‘ओ३म् भू: ओ३म् भू:’और गायत्री महामंत्र को जप लो हम सब का यह प्यारा है’ से हुआ।

वेविनार में वैदिक विद्वान चन्द्र शेखर शर्मा ग्वालियर,विमल वैदेही दिल्ली,डॉ सत्येंद्र शास्त्री ग्वालियर,लाल चंद वर्मा प्रवक्ता खुर्जा सहित विश्वभर से आर्य जन जुड़ रहें हैं।
संचालन संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवं आभार मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने जताया।

Related Articles

Back to top button