ललितपुर

बस के बाहर सिलेंडर भराना लकड़ी का जलने लगा चूल्हा

सिलेंडर भराएं या फिर घर – परिवार चलाएं

अभय प्रताप सिंह

मड़ावरा ललितपुर। खेती किसानी के साथ खेतिहर मजदूरी और मनरेगा में काम करने वाले जाबकार्डधारकों के मुताबिक ग्यारह सौ रुपये की रिफलिंग अब उनके बस की नहीं रही। वह दिनभर पसीना बहाने के बाद इतना नहीं कमा पाते, जिससे इस सिलेंडर को भराने के साथ अपना पेट भरने के लिए सामग्री खरीदी जा सके। यही सच्चायी है। जिस ओर जिम्मेदारों को ध्यान देने की महती आवश्यकता है।

मड़ावरा। लकड़ी और कोयले के काले धुआं में आंख झुलसाने वाली महिलओं को इस त्रासदी से राहत दिलाने के केंद्र की मोदी सरकार योजना तो बहुत अच्छी लायी लेकिन रसोई गैस सिलेंडर के बढ़ते दामों ने लाभार्थियों को इससे दूर कर दिया है। लगभग ग्यारह सौ रुपये कीमत के सिलेंडर को खरीदने में ग्रामीणों को कई बार सोंचना पड़ता है।

तहसील मडावरा क्षेत्र में केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना गांवों में दम तोड़ रही है। इस योजना की लौ गांवों तक पहुंची लेकिन महंगाई की आग में उसको सुलगाए रखने का ईंधन समाप्त हो गया। गांवों की गरीब महिलाओं को उज्ज्वला योजना के तहत सिलेंडर तो मिला लेकिन मंहगा होने के कारण उसको दुबारा भरवा नहीं सकीं। योजना से जुड़े 20 प्रतिशत उपभोक्ता बमुश्किल सिलेंडर रिफिल करा पा रहे हैं। जिस कारण महिलाएं लकड़ियां बीनकर चूल्हा फूंक रही है। सुबह व शाम दोनों समय उनको धुंए में परेशान होना पड़ता है। जिसके चलते उन लोगों को खासी परेशानी उठानी पड़ रही है।

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