अभय प्रताप सिंह
महरौनी(ललितपुर)– महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्त्वाधान मे संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य के द्वारा आयोजित ऑनलाइन दो दिवसीय वेविनार में प्रथम दिवस “अथर्ववेद मे पृथ्वी माता की दिव्य शक्तियों का गुणगान” एवं द्वितीय दिवस सृष्टि का परम रस उद्गीथ ओ३म छान्दोग्य उपनिषद पर भारतीय वैदिक संस्कृति के ओजश्वी प्रवक्ता प्रोफेसर चंद्रशेखर शर्मा ग्वालियर द्वारा सम्बोधित करते हुए कहा कि छान्दोग्य उपनिषद् में सृष्टि के आठ रसों का सरल,सरस,सुबोध एवं सारपूर्ण मनमोहक वर्णन है।
छान्दोग्य उपनिषद् का संबंध सामवेद से है।साम का नाम छन्द है।छ्न्द का सरस गायक छान्दोग्य कहलाता है।इसप्रकार यहाँ सरस भाव से आठ रसों का व्याख्यान है।
“पृथ्वी प्रथम रस”
इस सृष्टि का पंचमहाभूतों का दिव्यतम रस पृथिवी माता है।इसके विविध अन्न,फल,फूल,शाक आदि में रस का परिपाक परिलक्षित होता है।यह रस अधिष्ठात्री देवी होने से स्वयं रसा है।
” जल द्वितीय रस”
पृथिवी का रस स्वयं जल है।वसुधा में सर्वत्र जल की व्याप्ति और प्राप्ति है।सागर,सरोवर,झरने,कूप,नहर,नदी आदि में जल है।
” ओषधियाँ तृतीय रस है”
जल का रस ओषधियाँ हैं।जितने गेहूँ,चना,चावल,जौ,दाल आदि खाद्यान्न ओषधियाँ हैं।अनाज के दाने-दाने में रस है” पुरुष चतुर्थ रस”*
दिव्य ओषधियाँ का महान रस साक्षात् पुरुष शरीर है।”अन्नात् भवन्ति भूतानि”(गीता) अन्न से ही भूतों की उत्पत्ति होती है।
” वाक्(वाणी)पंचम रस”*
मानव शरीर में वाणी ही रस का अधिष्ठान केन्द्र है।हमारी रसना से रसवती वाणी सदा निसृत हो।वाणी का सदुपयोग रसपूर्ण हो।वाणी के प्रयोग में रस का संचार हो।
” ऋग्वेद षष्ठ रस”
परमात्मा की परम दिव्यवाणी ऋग्वेद की ऋचाओं का सस्वर गायन ही परम रस का उत्कृष्ट स्वरूप है।
” साम सप्तम रस”
सामवेद की ऋचाओं का रस के साथ गायन ही सप्तम रस है।साम शब्द स्वयं रस,संगीत एवं गायनरस को अभिव्यक्त करता है।साम गीति एवं गायनकला की उच्चतम स्थिति है।
” उद् गीथ अष्टम रस”
ओंकार का उच्च स्वर से गायन ही उद् गीथ है।उद् का अर्थ है- उच्च स्वर से, गीथ का अर्थ है- गायन करना। जब भक्त प्राण के उच्च स्वर से गायन करता है,तो यही उद् गीथ उपासना है।
सूर्य अपनी उष्ण किरणों से,चन्द्रमा अपनी शीतल रश्मियों,सागर अपनी उच्चतम लहरों से,वृक्ष अपनी हिलती शाखाओं से,फूल अपनी सुरभित गंध से,अग्नि अपनी दाहक दीप्ति से,पवन अपनी गति से,पक्षी अपने मधुर कलरव से,गोमाता अपने रंभाने से,मोर अपने नृत्य से अर्थात् सारी प्रकृति अपनी-अपनी दिव्य शक्ति से उद् गीथ गायन करके प्रभु का धन्यवाद कर रहे हैं।अतः भक्तों को भी अपने प्राणों से उच्चस्वर से उद् गीथ का गायन करना चाहिए।यह उद् गीथ का उच्चतम गायन सृष्टि का परम एवं दिव्यतम महारस है।
कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रभु भक्ति भजन ‘प्रभु ने जगत रचाया’ और समापन पर ‘बता गए हैं यह लोग सयाने प्रभु की बातें प्रभु ही जाने’ मधुर भजन सुनाए कर मंत्र मुग्ध कर दिया।
वेविनार में सुरेश गौतम अमेरिका,सरोजनी जौहर कनाडा,देवानंद मौरीसस,यूएस चौकसे सेवानिवृत्त मौसम विभाग,वीरेंद्र सरदाना दिल्ली,प्रेम सचदेवा दिली,डॉ सत्येंद्र शास्त्री ग्वालियर,लाल चन्द्र वर्मा खुर्जा,प्रोफेसर डॉ राजेन्द्र प्रकाश श्रीवास्तव करकरुआ ललितपुर,अभिलाष चंद्र कटियार बैंक अधिकारी,,महरौनी ललितपुर से रमेश सिंह परिहार,अवधेश प्रताप सिंह बैस,बाबू सिंह सेवानिवृत्ति सांख्यिकी अधिकारी,सौरव कुमार कचनौदा कला,अवधेश नारायण तिवारी शिक्षक कल्याणपुरा,बाबूलाल द्विवेदी बिल्ला,अनिल राठौर शिक्षक,प्रोफेसर डॉ राकेश नारायण द्विवेदी, रामकुमार दुबे,जयपाल सिंह बुन्देला मिदरवाहा,ध्यान सिंह यादव मिदरवाहा, एवं राज्यपाल पुरुष्कृत द्वय शिक्षक डॉ यतीन्द्र कटारिया मंडी धनौरा,चन्द्रभान सेन पन्ना, अवीनीश मैत्री वेदकला संवर्धन परमार्थ न्यास राजस्थान सहित सैकड़ों आर्य समाजी जुड़ रहें है।
संचालन संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवं आभार छामाधर प्रसाद अहिरवार ने जताया।