कालपी(जालौन)। शासकीय सुविधा न मिलने के कारण कालपी का कालीन उद्योग दिनोंदिन कम होता जा रहा है। कालीन का व्यवसाय कमजोर होने के कारण बुनकर तथा कारोबारियों सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो रहा है।
मालूम हो कि 80 के दशक में ग्वालियर के रहने वाले अबरार उस्ताद तथा रहीम बेग ने कालपी आकर कालीन बुनने की विधि नगर वासियों को बताई थी। देखते ही देखते हजारों लोगों ने कालीन की बुनाई का प्रशिक्षण लेकर बुनकरी के धंधे में जुट गये। कालपी की बुनी हुई हाथ की कालीन ग्वालियर, आगरा, दिल्ली, मुम्बई, जयपुर के एक्सपोर्ट मार्केट में काफी मांग होती थी। लेकिन बीते पांच सालों से कालीन का व्यवसाय में कमजोरी शुरू हो गई। विदेशों में कालीन का निर्यात कमजोर होने से मांग घट गई। इधर कच्चे माल, ऊन, सूत्र, विस्कोस आदि के दामों में बढ़ोत्तरी हुई लेकिन कालीन 300 रुपये प्रति वर्ग फुट की दर से ऊंचाई पर नही पहुंच सकी तथा बुनकरों, कारोबारियों को नुकसान होने लगा।
प्रोसेसिस प्लांट न होने से बनी गम्भीर समस्या
कालीन। उत्पादक कल्लू खान, सुलेमान मंसूरी आदि ने बताया कि निर्मित कालीन को ग्वालियर के प्लांटों में पहले तैयार कराया जाता था फिर निर्यातक खरीद करते थे। इसीलिए ग्वालियर के बिचैलियों को कालीन कम दामों में बेचने के हम लोग मजबूर होते थे तथा बिचैलियों अधिक मुनाफाखोरी करते थे। उन्होंने बताया कि कालपी में प्रोसेसिस प्लांट की तमाम बार मांग उठाई गई। लेकिन सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
फोटो परिचय- कालीन उद्योग में काम करते कारीगर