
जालौन(उरई)। नगर में धूमधाम से गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया गया। महिलाओं ने घरों के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर उसकी पूजा अर्चना की।
दीपावली के पर्व के बाद गोवर्धन पूजा के पर्व पर श्रृद्धालुओं ने विभिन्न मंदिरों में पूजा अर्चना कर श्रृद्धालुओं के बीच प्रसाद का वितरण किया गया। इस दिन महिलाओं ने जहां घरों में गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर एवं किसानों ने पालतू पशुओं को नहलाकर और टीका लगाकर उनकी पूजा अर्चना की। किसानों ने पशुओं के गले में नई रस्सी भी पहनाई। गोवर्धन पूजा को लेकर पंडित देवेंद्र दीक्षित बताते हैं कि गोवर्धन के दिन भक्त भगवान श्री कृष्ण की पूजा करते हैं और उनसे ये प्रार्थना करते हैं कि वे उन्हें संकटों से उबारे। इस दिन भगवान कृष्ण को अन्नकूट का भोग भी लगाया जाता है। पुराणों के अनुसार पहले सभी ब्रजवासी इंद्र की पूजा करते थे। भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर सभी ब्रजवासियों ने गोवर्धन की पूजा करनी प्रारंभ कर दी, जिसके कारण भगवान इंद्र क्रोधित हो गए और ब्रज में अपने मेघों से घनघोर वर्षा प्रारंभ करा दी। चारों ओर तबाही मचने लगी। ये सब देखकर भगवान श्री कृष्ण ने सबकी रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया। सभी ब्रजवासियों ने अपने परिवार और पशुओं के साथ गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली। सात दिनों तक घनघोर वर्षा होती रही। परंतु इससे भी ब्रजवासी विचलित नहीं हुए, तब इंद्र देव को ये आभास हुआ कि श्रीकृष्ण कोई साधारण बालक नहीं है। उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की। तभी से पूरे देश में गोवर्धन पूजा की जाती है। गोवर्धन पूजा के लिए घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की प्रतिकृति बनाई जाती है। गोबर से ही पशुधन बनाए जाते हैं। विधि-विधान से पूजा के बाद कथा सुनी जाती है। गोवर्धन के दिन पालतू मवेशियों गाय, बैल आदि को स्नान कराने की भी परंपरा है। स्नान के बाद गौ माता और पशुधन को रंग लगाया जाता है। इनके गले में नई रस्सी भी डाली जाती है।



