
सम्पादक सत्येन्द्र सिंह राजावत
उरई(जालौन)। दीपावली के 1 दिन पहले पड़ने वाली नरक चतुर्दशी के बारे में बताते हुए दीपक महाराज ने कहा कि जिस समय वराह अवतार ले कर श्री विष्णु जी ने पृथ्वी अर्थात भूमि को रसातल से बाहर निकाला था, उसी समय श्री विष्णु के स्पर्श के कारण भूमि से भौम नामक असुर का जन्म हुआ। यही भौमासुर, नरकासुर नाम से भी इस पृथ्वी पर जाना जाता था। एक दिन नरकासुर से त्रस्त आ कर देवराज इंद्र, द्वारकापुरी में श्रीकृष्ण के पास पहुँचे। उन्होंने श्री कृष्ण को बताया कि इस नरकासुर ने देवताओं, राजाओं और सिद्धों की पुत्रियों का हरण कर लिया है। इसके साथ ही उसने वरुण देव का छत्र, मंदराचल पर्वत का शिखर अर्थात मणिपर्वत और देवमाता अदिति के अमृत बूंदों को टपकाने वाले कुण्डलों को भी छीन लिया है।
देवताओं को हमेशा ही सुख प्रदान करने वाले श्री कृष्ण ने अपने साथ अपनी रानी सत्यभामा को लिया और गरुड़ पर सवार हो कर वे प्रयागज्योतिषपुर की ओर चले गए। श्रीहरि के सुदर्शन चक्र ने पहले शत्रुओं के सभी पाशों को काट डाला और उसके बाद मुरु नामक दैत्य को मार डाला। श्रीहरि के चक्र ने मुरु के सात हज़ार पुत्रों को भी गिराया।
इस प्रकार से कई दिग्गज दैत्यों को मारने के बाद श्रीहरि ने नरकासुर के पुर पर धावा बोल दिया। दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। नरकासुर ने हज़ारों अस्त्र-शस्त्रों की बारिश कर दी। श्री कृष्ण के चक्र ने उस असुर के दो टुकड़े कर दिए। उस असुर के मरने पर भूमि ने देवी अदिति के दोनों कुण्डल श्री कृष्ण को लौटा दिए। भूमि ने तब श्री कृष्ण को नरकासुर के कृत्यों को माफ़ करने के लिए भगवान् से प्रार्थना की, जिसे भगवान् ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। भगवान् श्री कृष्ण, नरकासुर को वरदान मांगने को कहा, तो उसने कहा कि आज के दिन जो भी प्रातः काल माँगलिक स्नान करेगा वह कभी नरक का मुंह नहीं देखेगा।
अब भगवान् नरकासुर के महल में गए, वहाँ उन्होंने वरुण देव का छात्र, मणिपर्वत, सोलह हज़ार एक सौ कन्याएँ, चार दाँतों वाले छह हज़ार हाथी और काम्बोज देश के इक्कीस लाख घोड़े देखे। श्री कृष्ण ने सभी रत्नों, कन्याओं, हाथी और घोड़ों को द्वारकापुरी भेज दिया। भगवान् ने वरुण के छत्र, मणिपर्वत और कुण्डलों को ले लिया और उन्हें उनके सही स्थान तक पहुंचा दिया।
नरकासुर का वध श्री कृष्ण ने आज ही के दिन यानी कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन किया था, इसलिए इस दिन को नरक चतुर्दशी भी कहते हैं। माता अदिति को जब सत्यभामा ने श्री कृष्ण सहित प्रणाम कर कुण्डल लौटाए तो उस समय माता अदिति ने सत्यभामा को, वृद्धावस्था और कुरूपता कभी स्पर्श ना कर सके, इस प्रकार का वरदान दिया, जिस वजह से आज के दिन को रूप चौदस भी कहते हैं।
यमराज का दूसरा नाम काल भी है, इसलिए आज के दिन को काल चौदस भी कहते हैं, क्योंकि इस दिन यमराज के लिए तर्पण भी किया जाता है।
राजा बलि को भगवान् विष्णु से मिले तीन दिन के राज्य के कारण श्री लक्ष्मी इन तीन दिन अपने भक्तों के घर पर जाती हैं और जो भक्तिभाव से उनकी पूजा-अर्चना करता है, वे उसके घर में स्थाई रूप में वास करती हैं।
हम आशा करते हैं कि यह दीपावली आप सभी के लिए बहुत मंगलमय हो और आप सभी पर माता लक्ष्मी की अपार कृपा रहे।
‘सनातन की कथा’ के ओर से दीपावली की ढेरों शुभकामनाएँ।