अनुराग श्रीवास्तव के साथ बबलू सिंह सेंगर महिया खास
जालौन (उरई)। श्रीमद्भागवत स्वयं से मिलने का अवसर प्रदान करती है। इसमें अंतहीन घटनाएं पिरोई हुई हैं। घटनात्मक, स्तुति प्रधान, गीत प्रधान और उपदेशात्मक ग्रंथ है। भागवत कथा चैतन्य एवं एकाग्रता से सुननी चाहिए। खंडेराव में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन मिथलेश दास जी महाराज ने कही।
सिकरीराजा निवासी शिवराम सिंह पटेल के खंडेराव आवास पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान के दूसरे दिन भगवताचार्य मिथलेश दास जी महाराज ने कथा में कहा कि सत्य धारण करने योग्य होता है। जगत की हर वस्तु में पल-पल परिवर्तन होता है। विभिन्न प्रसंगों का जिक्र करते हुए सत्य की साधना का आह्वान किया। भगवताचार्य ने कहा कि व्यक्ति का अपने आसपास बिना किसी को कहे और बताए सीमा रेखा खींचनी चाहिए। यह कंजूस युग है। इसमें ऐसा धन नहीं आए जो मतभेद और मनभेद कर दें। अपनों को अलग कर दे। भजन करना है तो भोजन करना सीखना जरुरी है, क्योंकि भोजन का सीधा फर्क मनुष्य की सोच पर पड़ता है। लोग जैसा भोजन करते हैं उनकी सोच वैसी ही हो जाती है, अगर कोई दूषित भोजन करता है तो उसके मन में धार्मिक ख्याल आना काफी मुश्किल होता है। मांस खाने से भगवान की कृपा से वंचित हो जाते हैं। भजन तभी होता है जब भोजन ठीक होता है । लोग धीरे-धीेरे सादे भोजन के महत्व को भूलते जा रहे हैं, वे फास्ट फूड और पश्चिमी जीवन शैली को ही अपने जीवन में उतार चुके हैं। ऐसी स्थिति में वह न चाह कर भी भगवान से दूर होते जा रहे हैं। साधना करने से भगवान की कृपा होना जरुरी होता है और जब हम जीवन हत्या करके उनका मांस खाते हैं तो हमारा मन तो दूषित होता ही है। साथ ही भगवान की कृपा भी नहीं मिल पाती। मृत्यु को सुधारने हेतु श्रीमद्भागवत कथा हैै। कलयुग के रहने के स्थान 1 जुआ खेलेने का स्थान, 2 मदिरा पान, 3 वैश्यागृह, 4 जहां पशुओं का वध होता है तथा सोने में कलयुग का निवास है ।मुक्ति एवं बंधन दोनों मन की परिस्थिति है। धन कमाने से मिलता है केवल वैभव पर शांति नहीं। महत्व ईश्वर तक पहुचने का मार्ग है धम्र का पालन अर्थात धर्म के अने रुप होते है जैस भुखे को भोजन करवाना, निर्धन पर दया रखना, देश सेवा करना, ईश्वर की आराधना करना आदि श्री महाराज आगे कहते है कि धन कमाने से वैभव तो मिल सकता है लेकिन शांति नहीं मिलती आदमी कितना भी धन क्यों न कमा ले लेकिन उसे पूर्ण शांति नहीं मिलती, शांति पाने के लिये मानव को ईश्वर की शरण मे जाना ही पड़ता है वही ऐसा स्थान है जहां व्यक्ति की सभी आवश्यकताएं पूरी हो जाती है कुछ शेष नहीं रह जाता। इस मौके पर पारीक्षत शिवराम सिंह पटेल, मुन्नी पटेल, नारायण दा नमस्ते बाबा पटेल, छोटे राजा, आकांक्षा, खुशी, शिवांगी, मिस्ठी, सुधा, कुंज, रंजना, संतराम सिंह, ज्ञानेंद्र पटेल, नीरज, पवन, शिवम, निखिल, ओमजी, हर्ष, भविष्य, अर्जुन आदि भक्त उपस्थित रहे।
फोटो परिचय—
मिथलेषदास।