0 दलित, आदिवासी बजट को खर्च न करना, दूसरे मदों में डायवर्जन, गाइड लाइन का उलंघनःकुलदीप बौद्ध
0 महिलाओं की उन्नति का दावा व सरकार के बजट के आंकड़ों में अंतरःरिहाना मंसूरी
सत्येन्द्र सिंह राजावत
उरई (जालौन)। कोविड के दौर से गुजरे रहे देश व 5 राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के चुनावी माहौल के बीच देश का बजट केंदीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 1 फरवरी को पेश कर दिया गया, इस बजट में दलितों, आदिवासियों, महिलाओं व युवाओं के लिए क्या? इसको लेकर दलित बजट समीक्षा व अनुसूचित जाति, जनजाति उपयोजना आवंटन एक अवलोकन व बजट विश्लेषण व मांग को लेकर बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच, दलित आर्थिक अधिकार आन्दोलन, एन.सी.डी.एच.आर. द्वारा गणेशधाम उत्सव गृह उरई-जालौन में चर्चा, मीडिया संबाद किया गया।
देश के बजट 2022-23 के विश्लेषण को एस.सी.पी., टी.एस.पी. के विशेष संदर्भ रखते हुए बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच संयोजक, संस्थापक एवं रिसर्चर कुलदीप कुमार बौद्ध ने कहा कि वित्तमंत्री ने देश का कुल अनुमानित बजट 39.44 लाख करोड़ रुपये का जो बजट पेश किया है उसमे अनुसूचित जाति के लिए 142342.36 करोड़ रूपये आवंटित किये गए है और अनुसूचित जनजाति के लिए 89265.12 करोड़ रूपये आवंटित किये गए है, इसमें अनुसूचित जाति के लिए 329 व अनुसूचित जन जाति के कल्याण के लिए 336 स्कीमों के तहत पैसा आवंटित किया गया है। बजट को देखा जाये तो सरकार समावेशी विकास के लिए उत्सुकता से बात कर रही थी लेकिन वित्तीय वर्ष 2022-23 में वह दिखाई नही देता है, हालांकि आवंटित बजट दिखने में काफी बड़ा लगता है लेकिन अनुसूचित जाति के लिए लक्षित स्कीम के लिए आवंटित बजट 37 फीसदी 53794 करोड़ रुपये और अनुसूचित जन जाति के लिए लक्षित स्कीमों में आवंटित 43 फीसदी 39113 करोड़ रुपये है, यह तथ्य सामान्य योजनाओं के है, जिन्हें बजट स्कीम का जामा पहना दिया गया है, जबकि ये स्कीमें समुदायों के सीधे सीधे हित में नहीं है?दलितों और आदिवासियों के विकास के संबंध में सरकार की बातों में जो उत्सुकता दिखाई देती है वह 2022-23 वित्तीय वर्ष के दलितों और आदिवासियों से संबंधित बजट से नदारत है।
बजट 2022-23 पर टिप्पणी करते हुए मंच के साथी रिहाना मंसूरी ने कहा की सरकार ने जो बजट पेश किया है उसमे जेंडर बजट को देखे तो बहुत ही कम दिया गया है सरकार महिलाओं के लिए बड़े बड़े बादे करती है लेकिन बजट में दलित महिलाओं के लिए कुछ भी नहीं है आज हमारी दलित बाल्मीकि महिलायंे मैला ढोकर अपने बच्चांे का पेट भर परिवार का गुजर बसर करती है वही मैला ढ़ोने बाली महिलाओं के लिए बहुत कम बजट दिया गया है! जहाँ पिछले वित्तीय वर्ष में 100 करोड़ रूपये आवंटित किये गए थे जिन्हें खर्च ही नहीं किया गया, इस वर्ष भी सिर्फ 70 करोड़ रूपये की धनराशी दी गयी है। बजट पर बात रखते हुए अहिल्या बाई होलकर यूथ बिग्रेड भारत के प्रेम नारायण सिंह पाल ने कहा की इस बजट में युवाओं की आकंक्ष्यों को गहरा झटका दिया गया भारत में पिछले एक रोजगार का गंभीर संकट खड़ा हो गया विशेष रूप से 18 से 40 वर्ष के आयु के लिए 30 जनवरी 2022 तक भारत की बेरोजगारी दर 6.05 फीसदी के स्तर पर बनी हुई थी। स्टूडेंट लीडर सचिन कुमार, नंदकुमार, प्रदुम्न, अर्सना मंसूरी ने कहा की दलित स्टूडेंट को समय से स्कालरशिप नहीं मिलती वही बुंदेलखंड से कई हजार दलित युवा रोजगार की तलाश में पलायन करके दूसरे प्रदेशों में जाते है, आखिर कब सुधरेगी दलितों की हालात जिस प्रकार से बजट की कटोती की जा रही है वो सामाजिक से ज्यादा आर्थिक अत्याचार दलितों के साथ किया जा रहा है जिस पर सबकी चुप्पी बनी हुई है, कोविड ने सबसे ज्यादा स्टूडेंट की पढ़ाई को प्रभावित किया है समय से स्कालरशिप न मिलना भी उनकी पढ़ाई को प्रभावित करती है।