कालपी (जालौन) शिक्षा किसी भी देश के भविष्य का निर्माण करती है जिस देश की जैसी शिक्षा प्रणाली होगी वैसा देश का विकास होगा। बमड़ी विडंबना है कि भारत एक विकासशील देश है जो भ्रष्टाचार युक्त शिक्षा के बाबजूद विकसित देश होने का सपना देख रहा है यहाँ की शिक्षा व्यापारिक रूप ले चुकी है जिसकी जितनी भरत्ना की जाय उतनी कम है। यहाँ आपको बताना जरूरी है कि केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा चलाये जा रहे विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था अभी इतनी मज़बूत और कारगर नहीं है कि लोग उनमें दी जाने वाली शिक्षा पर भरोसा कर पांयें जिससे बेबस अभिवावक अपने बच्चों का भविष्य प्राइवेट स्कूलों या कहें व्यापारिक संस्थानों के हवाले करने को मजबूर हो जाते हैं और शुरू हो जाता है कुशल रिशेप्सनिष्ट व काउंसलर के माध्यम से स्कूल प्रबंधन द्वारा अभिवावकों का मनमाने तरीके से आर्थिक शोषण। पीड़ित अभिवावकों का कहना है कि स्कूलों की बिज़नेस प्लानिंग के साथ अप्रैल माह में शिक्षण सत्र शुरू होते ही पहले तो विद्यालयों के बड़े बड़े पोस्टरों, सोशल मीडिया व अन्य प्रचार प्रसार के माध्यमों से अभिवावकों को लुभाया जाता है और फिर रजिस्ट्रेशन फीस, एडमिशन फीस, कॉशन मनी, एग्जाम फीस, ट्रांसपोर्ट फीस, लइब्रेरी फीस, प्रेक्टिकल फीस, एक्स्टा एक्टिविटी फीस सहित ना जाने कितने अनावश्यक अप्रत्यक्ष शुल्क लगाकर मोटी रकम जिसको स्कूल इयरली पैकेज बताकर बसूल करते हैं जिसका अलग अलग लिखित विवरण मांगने पर कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिलता। स्कूल प्रबंधन द्वारा अभिवावकों को ठगने का शिलशिला यहीं नहीं रुकता और उनको उनके कमीशन खोरी में लिप्त चिन्हित पुस्तक विक्रेता और ड्रेस विक्रेता के पास लूटने के लिये रेफर कर दिया जाता है जहाँ स्कूल का कमीशन फिक्स रहता जिससे पुस्तकों की कीमतेंर 50 रूपये से सीधा 8 से 10 गुना तक बढ़ जातीं हैं। प्राइवेट स्कूल के एक किसान अभिवावक ने बताया कि मेरी तीन बच्चीं हैं जिनकी नर्सरी की 2900, सातवीं की 4200 और नवमी की पुस्तकें 5900 रूपये की दी गयीं जिसमें एम आर पी पर कोई डिस्काउंट नहीं हुआ साथ ही स्कूल ड्रेस में भी नहीं बक्सा गया क्योंकि ये सभी पुस्तकें व ड्रेस दूसरी किसी दुकान पर उपलब्ध ही नहीं हैं और ना ही स्कूल फीस की रसीद पर स्कूल का रजिस्ट्रेशन नम्बर अंकित होता है ना पुस्तकों के बिल पर जी एस टी नम्बर। इस बाबत अभिवावकों ने सरकार से अपील की कि शासन प्रशासन द्वारा ऐसे स्कूलों व पुस्तक विक्रेताओं पर जाँच कर दंडात्मक कार्यवाही करते हुए जेल भेजना चाहिये। आपको बता दें कि इन निराश अभिवावकों के पास कोई विकल्प नहीं है। एक तरफ बेरोजगारी और मँहगाई की मार और दूसरी तरफ नौनिहालों का भविष्य। कोरोना काल के बाद से अभिवावक कुंठित और मजबूर हो गया है जिसको लेकर सरकार से लगातार गुहार लगा रहा है कि सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था दुरस्त की जाय जिससे हमारे नौनिहालों का भविष्य इन शिक्षा व्यापारियों के चंगुल से छुड़ाया जा सके तथा इन नौनिहालों को उच्च शिक्षा देकर देश विकसित होने के पहले पायदान पर खड़ा हो सके।
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