अनुराग श्रीवास्तव के साथ बबलू सिंह सेंगर महिया खास
जालौन (उरई)। आज मित्रता मात्र स्वार्थ पर आकर टिक गई है। लेकिन मित्रता का संबंध एक ऐसा संबंध है, जिससे बड़ा संबंध ना तो कोई है और ना ही होगा। मित्रता अपने आप में एक परिपूर्ण रिश्ता है। भागवत में कृष्ण और सुदामा चरित्र में स्वयं कृष्ण ने इस संसार को सच्ची मित्रता का पाठ पढ़ाया है। कृष्ण के राजा होने के बाद भी वर्षो बाद सुदामा को पहचानना और उन्हें अपने समान आदर दिलवाना और प्रेम में चावल खा दो लोकों का राजपाठ देना सच्ची मित्रता को इंगित करता है। यह बात श्रीवीर बालाजी हनुमान मंदिर पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दौरान कथा व्यास पं. सत्यम व्यास ने श्रोताओं को बतायी। सुदामा चरित्र की कथा का वर्णन करते हुए कथा व्यास पं. सत्यम व्यास ने बताया कि सुदामा की मित्रता भगवान के साथ निस्वार्थ थी। उन्होंने कभी उनसे सुख साधन या आर्थिक लाभ प्राप्त करने की कामना नहीं की लेकिन सुदामा की पत्नी द्वारा पोटली में भेजे गए चावलों ने भगवान श्रीकृष्ण से सारी हकीकत कह दी और प्रभु ने बिन मांगे ही सुदामा को सब कुछ प्रदान कर दिया। भक्त प्रह्लाद के पास कोई धन दौलत नहीं थी सिर्फ भाव व विश्वास था। सच्ची निष्ठा, प्रेम था तो भगवान को नृसिंह रूप धारण कर खंबे में से प्रकट होना पड़ा। हनुमानजी की तरह दास बनकर प्रभु की सेवा करो। सुदामा जैसी यारी करो, राजा बलि की तरह आत्मा से अपना सर्वस्व अर्पण करो, यह भगवत भक्ति है। भागवत ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन कथा का वाचन हुआ तो मौजूद श्रद्धालुओं के आखों से आंसू बहने लगे। उन्होंने कहा श्रीकृष्ण भक्त वत्सल हैं सभी के दिलों में विहार करते हैं। जरूरत है तो सिर्फ शुद्ध हृदय से उन्हें पहचानने की। समापन के अवसर पर कथा व्यास ने श्रद्धालुओं से आह्वान किया कि माता-पिता का आदर करें, सूर्य को अर्घ्य अर्पण करें, भगवान को भोग लगाएं, गाय को रोटी दें और अपने आत्मविश्वास को हमेशा कायम रखें। अपनी संपत्ति का कुछ हिस्सा अच्छे कार्यों के लिए अवश्य निकालें। उन्होंने भगवत गीता के प्रथम और अंतिम श्लोक के साथ इस कथा का समापन किया। इस मौके पर पुजारी कमलेश पुजारी, पुष्पा देवी, निखिल अग्रवाल, अंजनी श्रीवास्तव, भगवानदास गुप्ता, मनोज द्विवेदी, देवेन्द्र प्रजापति, आलोक शर्मा, राघवेंद्र तिवारी, सुरेन्द्र, जितेन्द्र, सतीश, अनिल, नितिन, दीपक, नरेंद्र, कुलदीप, अमर सिंह, अश्विनी, मुकेश, राजकुमार, मनीषा, संतोषी, विमलेश, आरती, सरोज, आरती, प्रज्ञा, व्यंजना आदि भक्ति उपस्थित रहे।