माधौगढ़

भाजपा में टिकट की रस्साकसी में मूलचंद सबसे आगे, ब्राह्मण प्रत्याशी पर भी हो सकता मंथन

प्रिन्स द्विवेदी

माधौगढ़ (जालौन)। भाजपा में मची भगदड़ से पार्टी में रायशुमारी का दौर तेज हो गया है हालांकि पार्टी एक-एक सीट पर मजबूत प्रत्याशी को उतारकर 2022 का रण हर हालत में जीतना चाहती है लेकिन पिछड़ी जाति के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के पार्टी से बगावत के तेवरों ने भाजपा को मानसिक रूप से परेशान कर दिया है। प्रदेश में चुनाव के ऐन वक्त पर एक साथ कई विधायकों के पार्टी छोड़कर जाने से हार-जीत का फर्क पड़े या न पड़े लेकिन चुनाव में भाजपा का ‘माइनस संदेश‘ तो जाएगा ही, जिसका असर मनोवैज्ञानिक रूप से पार्टी कार्यकर्ताओं और आम मतदाताओं को प्रभावित कर सकता है। सपा का पहले ब्राह्मणों की नाराजगी की नब्ज पर हाथ रखना फिर पिछड़ी जातियों में सेंधमारी करना भाजपा को लखनऊ से दिल्ली तक परेशान कर रहा है। इसीलिए पार्टी दोनों ही बिंदुओं पर रिस्क नहीं लेना चाहती और यह दोनों तथ्य माधौगढ़ विधानसभा पर फिट बैठते हैं। इसलिए इस सीट को इसी नजरिया से तौला जा रहा है। 2017 के विधान सभा चुनाव में 46 हजार वोटों के अंतर से जीत दर्ज कराने वाले बैकवर्ड से प्रत्याशी मूलचंद निरंजन अभी भी पार्टी के लिए बैकवर्ड कार्ड में सबसे मजबूत प्रत्याशी हैं,वहीं सामान्य में ब्राह्मण प्रत्याशी के नामों पर विचार सम्भव है। इस वक्त आमजन में मूलचंद निरंजन,गिरीश अवस्थी,चेतना शर्मा,उदयन पालीवाल के नाम प्रमुखता से चल रहे हैं। क्षत्रिय में ब्रजभूषण सिंह मुन्नू का नाम भी है। एक ब्राह्मण और एक पिछड़ी जाति का नाम भी पार्टी में अप्रत्याशित रूप से अंदरखाने चल रहा है,जिनकी अचानक घोषणा हो जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
प्रत्याशियों की संगठन पर पकड़ और जमीनी कार्यकर्ताओं की बीच पैठ उनका टिकट का आधार बनेगा, अब इनमें जो मजबूत होगा, फायनल मुहर उसी के नाम पर लगेगी।

मूलचंद निरंजन की ताकत:

पांच साल विधायक रहने का लाभ, जमीनी राजनैतिक अनुभव, प्रदेश अध्यक्ष के करीबी, आरएसएस से तालमेल, पार्टी में जमीन से जुड़े होने के कारण बूथ अध्यक्ष से लेकर समाज के आम लोगों के साथ मेल-मिलाप, यहां तक कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को नाम से जानते, व्यवहार में सरल, शालीन और सहज, द्वेषपूर्ण राजनीति से दूरी।
कमजोरी
गुटबाजी के चलते पार्टी के कई प्रमुख लोगों का विरोध,जनधारविहीन चंद लोगों के माध्यम से विधायकी चलने का आरोप खासकर माधौगढ़ और रामपुरा क्षेत्र में,पिछले चुनाव में जो साथ थे,उनसे दूरियां यानि उन्हें महत्व न देने का नुकसान।
चेतना शर्मा की ताकत:
प्रदेश के कई बड़े नेताओं से अति नजदीकी, रईस, मजबूत मैनेजमेंट टीम की बदौलत वह बहुत ही कम समय में जिले की भाजपा में खासी चर्चित चेहरा के रूप में उभरकर सामने आयी हैं। पूर्व के दो लोकसभा चुनावों में वह भाजपा के पक्ष में मजबूती से कैम्पिंग अभियान का हिस्सा रहीं।
कमजोरी
पार्टी में कम समय, जमीन पर कार्यकर्ताओं के बीच मजबूत पकड़ नहीं,जिलास्तरीय नेताओं से कम तालमेल, अनुभव की कमी।
गिरीश अवस्थी की ताकत:
डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा के रिश्तेदार, प्रदेश अध्यक्ष के माध्यम से सदस्यता, बीएसपी से प्रत्याशी रह चुके, चर्चित नाम के साथ ही ब्राह्मण समाज में उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है।
कमजोरी
बसपा से हाल ही में भाजपा ज्वॉइन करना, कार्यकर्ता के बीच मजबूत पैठ नहीं, संघर्षशील राजनैतिक नेता के तौर पर छवि का न बन पाना, दिल्ली और लखनऊ में मजबूत पैरोकारी का अभाव।
उदयन पालीवाल की ताकत:
पूर्व जिलाध्यक्ष, मजबूत भाजपाई पारिवारिक पृष्ठभूमि निर्विवाद छवि के चलते पार्टी में उनके विरोधियों की संख्या शून्य मानी जाती है। उनके परिवार में 1977 के चुनाव में केके पालीवाल जनसंघ के चुनाव से माधौगढ़ विधानसभा से चुनाव जीत चुके हैं।
ब्रजभूषण सिंह मुन्नू की ताकत:
पूर्व जिलाध्यक्ष, केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के नजदीकी होने के साथ-साथ उन्हें जनपद की राजनीति का लंबा राजनैतिक अनुभव है। इसके अलावा भी बुंदेलखंड की राजनीति के चाणक्य में गिने जाने वाले स्व. बाबूराम एमकाॅम के साथ रहकर राजनीति में कब कौन सा मोहरा बिछाना है उसे बखूबी अंजाम तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। पार्टी में उनकी पहचान बेबांक तरीके से अपनी बात रखने के रूप में जाना जाता है। इनके अलावा जिन नामों पर मंथन चल रहा है। वह अपरिचित तो नहीं लेकिन अप्रत्याशित जरूर होंगें।
फोटो परिचय—
भाजपा के दावेदार उदयन पालीवाल, मूलचंद्र निरंजन, चेतना षर्मा, बृजभूशण सिंह व गिरीष अवस्थी।

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