कालपी

हरदौल लाला मंदिर पर सात दिवसीय विष्णु महायज्ञ का किया गया आयोजन

कालपी(जालौन)। शुभारंभ भव्य कलश यात्रा से हुआ। गाजे-बाजे के साथ निकली यात्रा में श्रद्धालुओं के जयकारों से पूरा क्षेत्र गुंजायमान रहा। कलश यात्रा में गांव की महिलाएं, किशोरियां, बच्चे व युवक सभी मंदिर की परिक्रमा कर गांव भ्रमण किया। कस्वे की मुख्य सड़के बाजार होते हुए श्री रोपण गुरु मंदिर पहुँच कर बृहस्पति कुण्ड तालाब पर कलश में जल भरवाया। इसके बाद कलश यात्रा वापस होकर पुनः मंदिर पर पहुंची। शास्त्री ने विधि-विधान से पूजन-अर्चन कर कलश स्थापित कराया। कथा वाचक ने कहा कि यज्ञ से जहां मन की चेतना में विकास होता है, वही वातावरण में फैली अशुद्धियां दूर होती हैं। धर्म की चर्चा होने से पूरे क्षेत्र में शांति का वातावरण कायम रहता है। इस युग में मानव कल्याण के लिए यज्ञ, पूजा- पाठ आदि धार्मिक कार्य करते रहना चाहिये। शिव लीला तथा राम के लीलाओं को सुनने एवं अनुकरण करने से सभी प्रकार के कष्ट से मुक्ति मिलती है। शास्त्री ने कहा कि भगवान विष्णु की पूजा करने से कई जन्मों के पाप का अंत होता है। जीवन की सारी विपत्तियों का नाश होता है साथ ही घर की दरिद्रता समाप्त होती है। धन संबंधी समस्याएं खत्म होती है।उन्होंने यज्ञ का महत्व बताते हुए कहा कि यज्ञ प्रकृति के निकट रहने का साधन है। रोग-नाशक औषधियों से किया यज्ञ रोग निवारण वातावरण को प्रदूषण से मुक्त करके स्वस्थ रहने में सहायक होता है। यज्ञ शब्द यज एवं धातु से सिद्ध होता है। इसका अर्थ है देव पूजा, संगति करण और दान। संसार के सभी श्रेष्ठ कर्म यज्ञ कहे जाते है। यज्ञ को अग्निहोत्र, देवयज्ञ, होम, हवन, अध्वर भी कहते है। जहां होम होता है वहां से दूर देश में स्थित पुरुष की नासिका से सुगंध का ग्रहण होता है। परोपकार की सर्वोत्तम विधि हमें यज्ञ से सीखनी चाहिए। जो हवन सामग्री की आहूति दी जाती है उसकी सुगंध वायु के माध्यम से अनेक प्राणियों तक पहुंचती है। उसकी सुगंध से आनंद अनुभव करते है। सुगंध प्राप्त करनेवाले व्यक्ति याज्ञिक को नहीं जानते और न ही याज्ञिक उन्हें जानता है फिर भी परोपकार हो रहा है। वह भी निष्काम रूप से। यज्ञ में चार प्रकार के हव्य पदार्थ डाले जाते है। सुगंधित केसर, अगर, तगर, गुग्गल, कपूर, चंदन, इलायची, लौंग, जायफल, जावित्री आदि इसमें शामिल है। मलमूत्र के विसर्जन, पदार्थों के गलने-सड़ने, श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया, धूम्रपान, कल-कारखानों, वाहनों, भट्ठों से निकलने वाला धुआं, संयंत्रों के प्रदूषित जल, रसायन तत्व एवं अपशिष्ट पदार्थो आदि से फैलनेवाले प्रदूषण के लिए मानव स्वयं ही उत्तरदायी है। अतः उसका निवारण करना भी उसी का कर्तव्य है। पर्यावरण को शुद्ध बनाने का एकमात्र उपाय यज्ञ है। यज्ञ में संध्या में रासलीला का भी आयोजन किया जा रहा है। इस मौके पर सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।

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