जालौन

जीवन में क्षमा करने का भाव भी एक संस्कार

अनुराग श्रीवास्तव के साथ बबलू सिंह सेंगर महिया खास

जंालौन (उरई )। जीवन में क्षमा करने का भाव हमेशा होना चाहिए। अक्सर हम ऐसा नहीं कर पाते, लेकिन यह भी एक संस्कार है और चैतन्य समाज वही कहलाता है, जो क्षमा करना जानता है। यही गुण मर्यादा पुरूषोत्तम में भी रहे हैं। यह बात गूढ़ा स्थित श्रीशनि धाम परिसर में आयोजित रामकथा के वर्णन में मानस वैष्णवी किशोरीजी ने कही। गूढ़ा स्थित श्री शनि धाम परिसर मंे श्रीशनि अनुष्ठान महायज्ञ के साथ रामकथा का भी आयोजन किया जा रहा है। रामकथा में मानस वैष्णवी किशोरीजी ने कहा कि हम लोगों में अच्छे गुणों को देखें और उनकी प्रशंसा करें। हमारे सनातनी संस्कार भी यही कहते हैं। हमारी तो संस्कृति ही आदर देने की रही है। हम सब संस्कार की बुनियाद पर और आशीर्वाद के भवन पर खड़े हुए है। अगर कोई साधू के वेष में भी दिख जाए तो हमारे हाथ प्रणाम की मुद्रा में आ जाते हैं। रामचरित मानस हमें संस्कारी बनाना और आदर करना भी सिखाती है। कहा कि भाव से दिल से पुकारो तो परमात्मा हमें रस स्वरूप दिखाई देगा। मन की बहुत सी परतें हैं, हम तो सिर्फ उपरी सतह को जानते हैं, लेकिन जो गहरे में हैं उसे जानना जरूरी है। उसमें संसार की जो इच्छाएं हैं, वही तो बंधन में हमें बांधता है। जबकि राम नाम हमें बंधन मुक्त करता है। इस मौके पर रामश्री, विमला, सुषमा, आराधना, शकुंतला आदि मौजूद रहीं।

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