यमुना जल में तैरते सिद्ध हनुमान मूर्तियों की तीन अलग-अलग जगह स्थापना
रामपुरा(जालौन)। पंचनद के समीप एक अद्भुत शिवालय यहां प्रति शिवरात्रि की रात विभिन्न प्रजातियों के सर्पों का समूह नागमणि के प्रकाश में भगवान शिव का श्रंगार करके पूजा-अर्चना करता है ।
जगम्मनपुर से लगभग तीन किलोमीटर दूर यमुना तट पर लगभग 1वीं शताब्दी से 16वीं शताब्दी तक का व्यापारिक दृष्टि से समृद्धशाली नगर शिवगंज जो आज बुरे वक्त के थपेड़ों से एक जाति विशेष के कुछ घरों का मजरा मात्र रह गया है उसके समीप नदी के किनारे एक विशाल शिव मंदिर है जिस से यमुना तक पहुंचने के लिए 108 बहुत चैडी एवं विशाल सीड़िया तथा यमुना जल में नहाने हेतु छलांग लगाने के लिए तीन बुर्ज बने हैं जिसमें दो बड़े एवं मध्य में 1 छोटा बुर्ज है। सीडियों के शीर्ष पर शिव मंदिर के नीचे एक बहुत लंबी चैड़ी बारादरी बनी है एवं बारादरी के पूर्व दिशा में मजबूत चैडी दिवालो बाले बडे प्राचीन कक्ष बने हैं। संपूर्ण स्थल को स्थानीय लोग विसरांत घाट के नाम से संबोधित करते हुए भगवान शिव की अनेक अविश्वसनीय किवदंतिया सुनाते है । प्राचीन अभिलेखों एवं तथ्यों के आधार पर यह शिव मंदिर एवं विसरांत घाट का निर्माण आज से लगभग 11 सौ वर्ष पूर्व 9 वीं शताब्दी में उस कालखंड के समृद्धशाली कनार राज्य के अधिपति महाराजा बाघराज ने कराया । भारत के इतिहास एवं भाग्य को बदलने वाली मनहूस तारीख 17 मार्च 1527 जब मेवाड के महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) ने देश के सात महाराजाओं व सैकड़ों सामंतों के सहयोग से मुगल आक्रांता बाबर से युद्ध किया जो खानवा के युद्ध के नाम से विख्यात है। इस युद्ध में महाराणा सांगा वीरगति को प्राप्त हुए साथ ही हिंदू राजाओं की पराजय हुई। युद्ध में कनार राज्य के तत्कालीन महराजा आशराज देव द्वारा महाराणा संग्राम सिंह का साथ देने से क्रोधित बाबर ने जब कनार राज्य पर आक्रमण किया तोप के गोलों से कनार के विशाल दुर्ग को ध्वस्त कर दुर्ग में स्थित मंदिर की मूर्तियों को तोड़ दिया जो आज भी कनार के ध्वस्त दुर्ग (कर्णखेरा) पर एक ढेर के रूप में विद्यमान है। अनुमान है कि आबादी क्षेत्र से हटकर यमुना तट पर बने विशाल शिवालय पर संभवतः आक्रांता बाबर ने ध्यान नहीं दिया जो उसके द्वारा तोड़े जाने से बच गया। कालांतर में जब कनार के राजा के वंशज महाराजा जगम्मनशाह ने जगम्मनपुर में अपना किला बनवाया तो उन्होंने अपने पूर्वज महाराज बाघराज के द्वारा बनवाए गए शिव मंदिर को भी संरक्षित किया । इसी प्रकार उनके उपरांत जगम्मनपुर के राजा समय≤ पर शिव मंदिर एवं विसरांत घाट का जीर्णोद्धार कराते रहे लेकिन देसी रियासतों के खत्म होने के बाद से अब इस मंदिर का कोई धनी ना होने से यह निरंतर क्षतिग्रस्त होता जा रहा है।
शिवरात्रि पर सर्प करते हैं शंकर जी का श्रृंगार
स्थानीय बुजुर्ग ग्रामीणों की माने तो यहां सूक्ष्मशरीर धारी संत जो यमुना नदी के तट पर कहीं कंदराओं में निवास करते हुए साधनारत है प्रति सुवह लगभग तीन चार बजे विसरांत घाट के शिव मंदिर में जल फूल चढ़ाकर पूजा कर जाते हैं । ग्रामीणों के द्वारा उन संतो को पूजा करते हुए देखे जाने के लाख प्रयास विफल हुए लेकिन उनके द्वारा प्रति रात्रि के अंतिम प्रहर में होने वाली पूजा बंद नहीं हुई। इसी प्रकार शिवरात्रि की रात्रि में इस मंदिर में अनेक सर्प भगवान शिव के अरघा एवं शिव विग्रह के आसपास लिपटे देखे जाते है , उस समय मंदिर में अजीब सा चमकीला प्रकाश भी देखा गया है अनुमान है कि इस अवसर पर कोई मणिधारी नाग भी शिव आराधना करने आता है।
चमत्कारी सिद्ध हनुमान की पानी पर उतराती मूर्तियां
विसरांत घाट के ऊपर बने शिव मंदिर के बाहर एक हनुमान जी की मूर्ति है जिसके बारे में बताया जाता है कि आज से लगभग 250 वर्ष पूर्व जगम्मनपुर निवासी दुबे परिवार (अब वर्तमान में मिश्रा लिखते हैं ) स्वर्गीय कैलाश नारायण मिश्रा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के पिता स्व. श्री प्रागदत्त दुबे के परदादा यमुना नदी में स्नान कर रहे थे उसी समय उन्हें हनुमान जी की एक ही आकार की तीन पाषाण प्रतिमाएं पानी में तैरती हुई दिखी । पत्थर की प्रतिमाओं को पानी में तैरता देख उन्हें आश्चर्य हुआ और वह तीनों प्रतिमाओं को किसी प्रकार जगम्मनपुर लाए और तत्कालीन महाराजा रत्नशाह को तीनों मूर्तियां के मिलने की स्थिति बताकर भेंट कर दी। महाराजा रत्नशाह ने एक मूर्ति को अपने ही किला के उत्तर में नजर बाग में तथा एक मूर्ति को मिलने वाले स्थान यमुना तट पर शिव मंदिर के बाहर स्थापित कराया व एक मूर्ति उन्हें सौंप दी जिन ब्राह्मण को वह पानी में तैरती हुई प्राप्त हुई थी । यह तीनों मूर्तियां आज भी अपने अपने स्थान पर पूजित हैं।
अद्भुत कला का उदाहरण
विसरांत घाट पर बना शिव मंदिर अद्भुत कला का उत्कृष्ट उदाहरण है । मंदिर के अंदर गणेश कार्तिकेय शिव परिवार की मूर्तियों के अतिरिक्त मंदिर के अंदर गुम्बद में बनी चित्र आकृतियां अद्भुत कला व प्राचीन संस्कृति को प्रमाणित कर रही हैं। मंदिर के बाहर भगवान नंदी जी की मूर्ति को कुछ असामाजिक तत्वों ने आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया है इसके बावजूद भी लोगों में मंदिर में विराजमान भगवान शिव के प्रति श्रद्धा कम नहीं हुई है। प्रति बर्ष श्रावण माह के सोमवार पर यहां श्रद्धालुओं की अपार भीड़ जुटती है। मान्यता है कि यहां पर की जाने वाली साधना अन्य सामान्य स्थानों पर की जाने वाली साधना से 1000 गुना अधिक परिणाम देती है।