कोंच(जालौन)। तिलक नगर स्थित गुप्तेश्वर महादेव मंदिर में आयोजित वागीश्वरी साहित्य परिषद की मासिक गोष्ठी में ऐसी काव्य रसधार बही कि श्रोता झूम उठे। गोष्ठी की अध्यक्षता मोहनदास नगाइच ने की जबकि मुख्य अतिथि अंतरराज्यीय मंचों के अभिनंदित कवि जाने माने साहित्यकार नरेंद्र मोहन मित्र व विशिष्ट अतिथि नामवर कवि राजेंद्र सिंह गहलौत रसिक रहे।
राजेंद्र सिंह गहलौत ने वाणी वंदना के माध्यम से मां सरस्वती का आह्वान कर कार्यक्रम को गति प्रदान की। उन्होंने अपनी रचना के केंद्र में प्रेम को जगह देते हुए कहा, मुझको तो सम्मान नहीं बस थोड़ा निर्मल प्यार चाहिए, छल से कोसों दूर रहे वो प्यारा सा दिलदार चाहिए। मुख्य अतिथि नरेंद्र मोहन मित्र ने रचना पाठ करते हुए कहा, ‘मदद करने से मिलती जो बड़ी घातक प्रशंसा है, अहंकारी बना देती दशानन की ये लंका है।‘ सम सामयिक समस्याओं और सामाजिक विद्रूपताओं को लेकर रचनाएं गढने में माहिर सुनीलकांत तिवारी ने रचना बांची, ‘महका के किसी दिल को गुजर जाए तो अच्छा, खुशबू सा हवाओं में बिखर जाए तो अच्छा।‘ मुन्ना यादव विजय ने रचना पाठ किया, ‘हमारी दोस्ती बस इस बात पे कायम है, हमारे दोस्त हमसे बहुत अच्छे हैं।‘ वरिष्ठ रंगकर्मी व कवि मोहनदास नगाइच ने कहा, ‘जो खुशी दे थाम लो उसका दामन, जिंदगी रोकर नहीं हंस कर गुजर जाएगी।‘ संतोष तिवारी सरल ने कहा, ‘मनुष्य हैं हम तो भूल करेंगे, भूल करेंगे तो दुख से भरेंगे, चाहते यदि हम आनंद से रहना तो, भूल की कभी न पुनरावृत्ति करेंगे।‘ नंदराम भावुक ने आध्यात्म से जोड़ते हुए रचना पढी, ‘क्रोध की आग में तन क्यों जलाते हो, शांति की सरिता में क्यों नहीं नहाते हो, इच्छाएं अनंत हैं पूर्ण न होंगी भावुक, प्रभु चरण में मन क्यों नहीं लगाते हो। ओंकार नाथ पाठक ने भी उम्दा व्यंग्य पढा। संचालन आनंद शर्मा अखिल ने किया। इस दौरान रामसहाय सेठ, कृष्ण कुमार बिलैया, मयंक मोहन गुप्ता, नारायन दास, संतोष राठौर, प्रमोद अग्रवाल, मुन्ना लोहेवाले, लक्ष्मीनारायण पुजारी, आशाराम मिश्रा, रामबिहारी रेजा, नंदकिशोर, कन्हैया गोस्वामी आदि मौजूद रहे।