जालौन

आराध्य को ध्यान में रख की जाने वाली भक्ति समस्त मनोरथों को पूर्ण करती , भगवतचार्य मिथलेश महाराज

जालौन  । भक्ति यदि आराध्य को ध्यान में रखकर की जाए तो व्यक्ति जो चाहता है फल प्राप्त कर सकता है। परंतु आवश्यकता है कि प्रभु का जो भी ध्यान किया जाए वह निःस्वार्थ भाव से किया जाए। यह बात मोहल्ला खंडेराव में आयोजित साप्ताहिक श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के अंतिम दिन भागवताचार्य पं. मिथलेश महाराज ने कही।

मोहल्ला खंडेराव में भागवत कथा के अंतिम दिन भागवताचार्य पं. मिथलेश महाराज ने उपस्थित भक्तजनों को संबोधित करते हुए कहा कि ईश्वर अपने भक्त को बिन मांगे ही सब कुछ दे देता है। जैसे सुदामा को बिन मांगे ही सब कुछ मिल गया। भगवान् अपने भक्त के लिए हमेशा ही तत्पर रहते हैं। सिर्फ उन पर विश्वास करने की जरूरत है। सुदामा जी के दरिद्र होने पर उनकी पत्नी के बार-बार आग्रह करने पर सुदामा अपने बालसखा श्रीकृष्ण से कुछ मांगने की इच्छा लिए उनसे मिलने द्वारिकापुरी जाते हैं। लेकिन श्रीकृष्ण के भव्य महल व राजसी ठाठ-बाट देखकर वह संकोच में पड़ जाते हैं। वह श्रीकृष्ण को अपने आने का उद्देश्य भी नहीं बता पाते हैं। लेकिन भगवान् तो अपने भक्तों के मन तक की बात को भली- भांति जानते हैं। श्रीकृष्ण ने जान लिया कि सुदामा किस उद्देश्य से उनसे मिलने आए हैं। जिस पर उन्होंने सुदामा के कुछ मांगे बिना ही उन्हें सबकुछ दे दिया। जब सुदामा अपने घर पहुंचते हैं, तो वहां की कायाकल्प देखकर पर भौंचक्के रह जाते हैं। भगवान प्रसन्न होते हैं परंतु आवश्यकता है कि प्रभु का जो भी ध्यान किया जाए वह निःस्वार्थ भाव से किया जाए। कथा श्रवण कर रहे श्रद्धालुओं में पारीक्षित मुन्नी देवी, शिवराम निरंजन, आकांक्षा, शिवांगी, मिस्ठी, संध्या, सुधा, कुंज, रचना, सोनम, गुड़िया, कंचन, रेखा, गायत्री, रंजना, छोटे राजा ,चंद्रभान गौर ,दीपु आदि भक्तों ने भागवत कथा को सुनकर जीवन में अच्छे कर्मों को अपनाने की प्रेरणा ली।

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