जगम्मनपुर

देश के श्रेष्ठ तीर्थों में शुमार पंचनद विकास की दृष्टि से उपेक्षित

जगम्मनपुर(जालौन)। देश के प्रमुख तीर्थों में शुमार एवं विभिन्न पुराणों की कथाओं का प्रत्यक्षदर्शी पंचनद संगम सरकार की अनदेखी के कारण गुमनामी के अंधेरे में डूबा अपने उत्थान की बाट जोह रहा है।
बुंदेलखंड के जालौन जिला अंतर्गत जगम्मनपुर के समीप पांच नदियों का प्रमुख तीर्थ पंचनद संगम स्थल सरकार की विकासकारी योजनाओं से अपने उत्थान के लिए लालायित है। भारत का यह अनूठा संगम युगों युगों की घटनाओं एवं साधनारत संतो व उपद्रव करने वाले असंतो का साक्षी है । स्कंद पुराण के अनुसार भृगुवंशी गुरु जावालि (भार्गव महाअथर्वण) की पुत्री वाटिका का विवाह श्रीकृष्ण द्वैपायन (व्यास जी) से हुआ था। भार्गव महाअथर्वण ऋषि पंचनद के तट पर आश्रम बनाकर साधनारत थे उसी समय यमुना के किनारे पद यात्रा करते हुए श्रीकृष्ण द्वैपायन (व्यास जी) जब पंचनद के पास जंगल से गुजर रहे थे तभी भेड़ियों ने उन पर हमला कर मरणासन्न दिया । घायल अवस्था में महाअथर्वण ऋषि की कन्या वाटिका श्री व्यास जी को अपने आश्रम पर लाई व पिता की दी गई औषधि एवं मंत्रों के प्रभाव से उन्हें स्वस्थ किया । कुछ काल बाद दोनों में विवाह संपन्न हुआ। श्रीमद् देवी भागवत पुराण के पंचम स्कंध के दूसरे अध्याय के अनुसार महिषासुर के पिता रम्भ तथा चाचा करम्भ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पंचनद क्षेत्र में आकर तपस्या की करम्भ ने पंचनद के पवित्र जल में बैठकर अनेक वर्ष तक तप किया तो रम्भ ने दूध वाले वृक्ष के नीचे पंचाग्नि का सेवन किया । इंद्र ने मगरमच्छ (ग्राह) का रूप धारण कर करम्भ को तपस्या करते हुए मार डाला। विष्णु पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के स्वर्गारोहण एवं द्वारका नगरी के समुद्र में डूब जाने के बाद पांडुपुत्र अर्जुन द्वारा द्वारका नगर वासियों को पंचनद क्षेत्र में बसाए जाने का उल्लेख है….
पार्थः पंचनदे देशे वहु धान्यधनान्विते।
चकारवासं सर्वस्य जनस्य मुनि सन्तम्।।
महाभारत सभा पर्व अध्याय 32 व अध्याय 11, वन पर्व अध्याय 16, 42, 43, 83, 134 तथा उद्योग पर्व अध्याय 4 व 19 , कर्ण पर्व अध्याय 45 में पंचनद तीर्थ क्षेत्र के अनेक आख्यान हैं। महाभारत के युद्ध में पंचनद निवासियों ने दुर्योधन की सेना का पक्ष लिया था।
कृत्सनं पंचनद चैव तथैव वामारपर्वतम्।
उत्तर ज्योतिष चैव तथा दिव्यकटं पुरम्।।
महाभारत युद्ध के उपरांत पंचनद क्षेत्र को पांडव नकुल में अपनी दिग्विजय यात्रा के दौरान जीता था।
‘‘ ततः पंचनद गत्वा नियतो नियताशनः ‘‘
इसी प्रकार विभिन्न पुराणों में वशिष्ठ, विश्वामित्र, महर्षि भृगु, जमदग्नि के द्वारा पंचनद पर साधना करने की प्रमाण मिले हैं। 10 वीं शताब्दी में पंचनद पर नागा साधुओं में वन संप्रदाय के महात्माओं ने इसे अपना आश्रम बनाया उसी समय से अभी तक यहां वन संप्रदाय के साधु निवास कर रहे है। सन 1603 ईस्वी में वन संप्रदाय के 19वें सिद्ध संत मुकुंदवन (श्री बाबासाहब) महाराज एवं उनके शिष्य मंजूवन जब पंचनद पर आश्रम पर साधनारत थे उसी समय रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी उनसे भेंट करने के लिए पंचनद पर पधारे , दो महान संतो के मिलन के आश्चर्यचकित कर देने वाले अनेक किस्से इस क्षेत्र में प्रचलित है ।

पंचनद पर श्री बाबासाहब मंदिर
वैसे तो समूचा पंचनद क्षेत्र तपोवन है लेकिन यहां पर 16 वीं शताब्दी में साधनारत रहे सिद्ध संत श्री मुकुंदवन (बाबा साहब) महाराज के प्रति लोगों में असीम श्रद्धा है। मान्यता है कि श्री बाबा साहब महाराज आज भी पंचनद आश्रम में साधनारत है इस कारण उनके मंदिर में श्री बाबा साहब की मूर्ति के स्थान पर चरण ही पूजे जाते हैं। प्रतिवर्ष कार्तिक की पूर्णिमा पर यहां स्नान मेला का विराट आयोजन होता है। इस अवसर पर यहां एक लाख से अधिक श्रद्धालु स्नान करके श्री बाबा साहब के मंदिर में वीरा (पान) बताशा पुष्प चढ़ाकर अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। मान्यता है कि फसल की मड़ाई (खलिहान उठने) के बाद आसपास के जितने गांव से मंदिर प्रबंधन के लिए श्री बाबा साहब मंदिर पर अनाज दान किया जाता है उसने गांव में अभी तक ओलावृष्टि नहीं हुई है।
पांच नदियों का संगम पंचनद
पंचनद का शाब्दिक अर्थ ही पंच का अर्थ पांच , नद अर्थ का नदी अर्थात पांच नदियां…
पंचनद पर पांच सदानीरा पवित्र नदियों का संगम है ।
यमुना नदी
इस स्थल से बहने वाली सूर्य तनया एवं यमराज की बहन व भगवान श्री कृष्ण की पटरानी यमुना नदी का उद्गम हिमालय के हिमाच्छादित श्रृंग बंदरपुच्छ जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से 6200 मीटर है के लगभग 12 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में स्थित कालिंद पर्वत के यमुनोत्री से होता है । अपने उद्गम स्थल से हरियाणा उत्तर प्रदेश होती हुई लगभग 1376 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर प्रयागराज में गंगा नदी में मिलती है ।
चंबल नदी
चंबल नदी श्रापित मानी जाती है। यह दक्षिण पठार के मध्य प्रदेश में मऊ के निकट समुद्र तल से 216 मीटर ऊंची जनापाव नामक पहाड़ी से निकलकर मध्य प्रदेश राजस्थान उत्तर प्रदेश की भूमि की प्यास बुझाते हुए लगभग 966 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर ग्राम भरेह के पास यमुना नदी में मिल जाती है।
ऐसी मान्यता है कि शकुनी द्वारा जुंआ का आयोजन मुरैना में चंबल तट पर हुआ था। वही द्रोपदी का वस्त्र हरण हुआ , द्रोपती ने श्राप दिया कि जो चंबल नदी का जल पिएगा वह नष्ट हो जाएगा।
पहूज नदी
पहूज नदी का पौराणिक नाम पुष्पावती है, यह झांसी के पास वैदौरा नामक गांव में पहाड़ियों के बीच से निकलती है । यह लगभग 200 किलोमीटर की यात्रा पूरी करते हुए पंचनद पर यमुना नदी में मिल जाती है।
सिंध नदी
सिंध नदी मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में नैनवास कला स्थित तालाब से निकलती है। वहीं कुछ लोग इसका उद्गम गुना जिले की सिरोंज के पास पहाड़ी से मानते हैं । यह नदी 470 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर पंचनद पर पहूज नदी में मिल जाती है। अत्यधिक पवित्र नदी मानी जाती है ।भवभूति के मालती माधव के नौवें अंक में तथा पद्मपुराण के द्वितीय अध्याय में इस नदी का बिस्तृत वर्णन है।
क्वारी नदी
कुंवारी नदी का उद्गम शिवपुरी के वैराड के निकट पहाड़ी से माना जाता है । यह मध्य प्रदेश के भिंड जिला होती हुई पंचनद की पहूज नदी में मिल जाती है।
सरकारी उपेक्षा का शिकार
घने जंगलों के बीच एवं आवागमन के मार्गो से वंचित पंचनद तीर्थ क्षेत्र गुमनामी में डूबा सरकारी योजनाओं से अपने उत्थान की राह देखता रहा, अभी तक हुए जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारियों की इच्छा शक्ति का अभाव पंचनद के विकास में बाधक बना रहा, लेकिन वर्तमान विधायक मूलचंद्र सिंह निरंजन तथा कैबिनेट मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह के प्रयास से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पंचनद की विकास की योजनाओं को मूर्ति रूप देने हेतु कदम उठाए हैं ,इस दिशा में अधिकारियों को निर्देशित किया गया है। क्षेत्रीय ग्रामीण आशान्वित हैं कि अब शायद इस पवित्र तीर्थ क्षेत्र एवं यहां के निवासियों के दिन बहुरेंगे।

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